हिन्दु राष्ट्र की अनंत शक्ति जग रही।
आर्य -देश की स्वदेश-भक्ति जग रही॥
ज्योतिर्मय उषा-काल आ रहा
मोहयुक्त तिमिर जाल जल रहा
वह परानुकरण की मोह -रात्रि ढल रही॥हिन्दु -राष्ट्र की॥
प्रलयंकर यज्ञ जो चल रहा
जन-उर का पाप-कलुष जल रहा
भेदभाव की महान भित्ति गिर रही॥।हिन्दु -राष्ट्र की॥
आत्मज्ञानयम प्रकाश छा रहा
सुप्त सत्व-बल शनैः आ रहा
घोर मनोदास्य से विमुक्ति मिल गई॥।हिन्दु -राष्ट्र की॥
सावधान पाञ्चजन्य बज रहा
सावधान गाण्डीव तन रहा
मदन -दहन की तृतीय दृष्टि तन गई॥।हिन्दु -राष्ट्र की॥
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