अमूमन सभी राजनीतिक दल के सांसदों का दबाव देखते हुए केंद्र सरकार भले ही इस बार वेतन बढ़ोतरी का फैसला संसदीय समिति की सलाह पर कर रही हो, लेकिन भविष्य में खुद को इस विवाद से दूर रखने की कवायद भी शीर्ष स्तर पर शुरू हो गई है। सत्ता पक्ष और प्रमुख विपक्षी दल इस बात पर सहमत नजर आ रहे हैं कि आगे से सांसदों के वेतन-भत्ते बढ़ाने का फैसला कोई आयोग या अधिकारप्राप्त समूह करे तो बेहतर होगा। भारतीय जनता पार्टी की ओर से खुद शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इस तरह की पहल की है।
सूत्रों के मुताबिक आडवाणी ने गृह मंत्री पी चिदंबरम से बातचीत के दौरान अपने इस मत से अवगत करा दिया था कि भविष्य में वेतन बढ़ाने का फैसला एक आयोग बनाकर उसके सुपुर्द कर दिया जाए, जिसे कानूनी अधिकार हासिल हो। उन्होंने अपनी राय से लोकसभा में सदन के नेता और वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी को अवगत कराया है। भाजपा नेता और राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने भी इसी तरह का मत जाहिर करते हुए स्पष्ट किया है कि सांसदों को आम कर्मचारियों की तरह अपने वेतन के लिए हो-हल्ला मचाना ठीक नहीं है। लिहाजा बेहतर होगा कि इस प्रक्रिया को सूचकांक से जोड़ दिया जाए।
वहीं कांग्रेस की ओर से केंद्रीय मंत्रिमंडल में कई मंत्री भी खुद से वेतन बढ़ाने का फैसला करने की मुखालफत कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि केंद्रीय सूचना-प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी, पी चिदंबरम समेत कुछ मंत्री इस बात की पैरवी कर रहे हैं कि सांसदों के वेतन के बारे में खुद ही कोई फैसला करना ठीक नहीं है। कैबिनेट में मतभेद के चलते ही एक बैठक में वेतन बढ़ोतरी का फैसला नहीं हो पाया था। सूत्रों का कहना है कि सरकार के भीतर इस बात पर मंथन हो रहा है कि कोई ऐसा रास्ता तलाशा जाए जिससे खुद को तोहमत से बचाया जा सके। सूत्रों के मुताबिक वेतन बढ़ाने संबंधी विधेयक संसद में पेश करते समय सरकार भविष्य में इस तरह के फैसले की प्रक्रिया के बारे में भी ठोस फैसले की घोषणा कर सकती है।
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