उत्तर भारत में मुख्य रूप से श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाने वाला रक्षाबंधन त्यौहार भाई का बहन के प्रति प्यार का प्रतीक है।
इसी दिन बहनें अपने भाइयों की दीर्घायु के लिए उनकी कलाई में राखी बांधती है और बदले में भाई भी अपनी बहन को उसकी हर प्रकार से रक्षा करने का वचन उपहार के रूप में देते हैं।
विजय का प्रतीक है रेशमी धागा
राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे तब महिलाएं उनको माथे पर कुमकुम तिलक लगाने के साथ-साथ हाथ में रेशमी धागा भी बांधती थी। इस विश्वास के साथ कि यह धागा उन्हे विजयश्री के साथ वापस ले आएगा।
भाई के कानों के पर भोजली लगाने की प्रथा
भारत के अनेक प्रांतों में श्रावण पूर्णिमा के दिन बहनों के द्वारा भाई के कानों के ऊपर भोजली या भुजरियां लगाने की प्रथा भी है। भाई इसके बदले में अपनी बहन को उपहार या धन देते हैं।
रक्षाबंधन के दिन संपूर्ण होती है अमरनाथ यात्रा
अमरनाथ की अतिविख्यात धार्मिक यात्रा गुरुपूर्णिमा से प्रारंभ होकर रक्षाबंधन के दिन संपूर्ण होती है। कहते हैं इसी दिन यहां का हिमानी शिवलिंग भी पूरा होता है।
कथा (रक्षाबंधन) :
रक्षाबंधन के सन्दर्भ में अनेकों पौराणिक व ऐतिहासिक कथाएं प्रचलित हैं-
1.महाभारत के अनुसार जब श्रीकृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया था, तब उनकी तर्जनी अंगुली में चोट आ गई थी। उस समय पांडवों की पत्नी द्रौपदी ने भगवान कृष्ण की कलाई से बहते खून को रोकने के लिए अपनी साड़ी का किनारा फाड़ कर बांधा था। वह श्रावण मास की पूर्णिमा का ही दिन था। इस प्रकार उन दोनों के बीच भाई-बहन का बंधन विकसित हुआ था, तथा भगवान श्री कृष्ण ने भी द्रौपदी को रक्षा करने का वचन दिया था। श्रीकृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी साड़ी को बढ़ाकर अपनी बहन की रक्षा कौरवों से की थी।
2. भविष्य पुराण के अनुसार देव व दानवों में जब युद्ध हो रहा था, उस दौरान दानवों को हावी होते देख इन्द्र घबरा कर बृहस्पति के पास गये। वहां बैठी इंद्र की पत्नी इंद्राणी सब सुन रही थी। उन्होंने रेशम के धागे को मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोगवश वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था।
तभी से लोगों को विश्वास है कि इंद्र युद्ध में इसी धागे की बदौलत विजयी हुए थे। इसी कारण श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा धन,शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है।
ऐतिहासिक कथा :
एक बार मेवाड़ की महारानी कर्मवती को बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की पूर्वसूचना मिली। उस समय रानी युद्ध लड़ऩे में असमर्थ थी। उसने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर अपनी व अपने राज्य की रक्षा करने के लिए उससे याचना की। मुसलमान होते हुए भी हुमायूँ ने राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुँच कर बहादुरशाह के विरूद्ध मेवाड़ की ओर से लड़ते हुए कर्मवती व उसके राज्य की रक्षा की।
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