विवादित रामजन्म भूमि में प्रतिष्ठापित रामलला की पूजा अर्चना पर भी महंगाई की मार का असर देखा जा रहा है। प्रधान पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास ने विवादित परिसर के पदेन प्रभारी और फैजाबाद के मंडलायुक्त से इसके लिए पैसा बढ़ाने की गुहार लगायी है।
रामजन्म भूमि के प्रधान पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास ने अपने पत्न में कहा है कि पूजा-अर्चना के लिए स्वीकृत पैसा कम है। इस पैसे से पूजा आरती करने में कठिनाई हो रही है इसलिए इसे बढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने पुजारियों के वेतन को भी बढ़ाने की मांग की है।
श्री दास ने कहा है कि पूजा आदि के लिए 43 हजार 600 रपये प्रति माह स्वीकृत है। इतने कम पैसे में विधिवत पूजा अर्चना चलाना कठिन हो रहा है क्योंकि देसी घी और फूल आदि काफी महंगे हो गये हैं।
छह दिसम्बर 1992 को ध्वस्त हुए विवादित ढांचे के बाद बने अस्थायी मंदिर (मेकशिफ्ट स्ट्रक्चर) में रामलला की नियमित पूजा अर्चना और भोग आरती चल रही है। इसके लिये 43 हजार 600 रपये महीने स्वीकृत है। इसी पैसे में एक प्रधान पुजारी और चार सहायक पुजारियों को वेतन भी दिया जाता है।
प्रधान पुजारी को पांच हजार रपये मासिक मिलता है जबकि अन्य पुजारियों और कर्मचारियों को दो से तीन हजार रपये तक दिये जाते हैं। एक अनुमान के तहत 23 हजार रपये प्रतिमाह इन लोगों के वेतन पर ही खर्च हो जाते है।
रामलला की प्रतिदिन पांच बार आरती होती है। भोग में पेड़ा जैसी महंगी मिठाइयां चढ़ती हैं। प्रत्येक आरती देसी घी से ही की जाती है। श्री दास का कहना है कि घी काफी महंगी हो गयी है। इसलिए पूजा अर्चना के लिए पैसा और बढ़ाना चाहिए।
दिलचस्प बात यह है कि मेकशिफ्ट स्ट्रक्चर के पास रखे दानपात्नों में करीब डेढ़ लाख रपये प्रतिमाह एकत्न होता है। यह पैसा सरकारी खजाने में जमा होता है। यह पहला मौका नहीं है जब प्रधान पुजारी ने वेतन और पूजा अर्चना के पैसे बढ़ाने की मांग की है। श्री दास ने बताया कि समय समय पर उनके वेतन में वृद्धि की गयी है।
उन्होंने स्वीकार किया कि दो साल पहले उन लोगों का वेतन बढ़ाया गया था। उनका कहना है कि दानपात्नों से मिलने वाले पैसे से ही रामलला की पूजा-अर्चना और उन लोगों के वेतन आदि का खर्च निकल सकता है।
रामजन्म भूमि के प्रधान पुजारी आचार्य सत्येन्द्र दास ने अपने पत्न में कहा है कि पूजा-अर्चना के लिए स्वीकृत पैसा कम है। इस पैसे से पूजा आरती करने में कठिनाई हो रही है इसलिए इसे बढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने पुजारियों के वेतन को भी बढ़ाने की मांग की है।
श्री दास ने कहा है कि पूजा आदि के लिए 43 हजार 600 रपये प्रति माह स्वीकृत है। इतने कम पैसे में विधिवत पूजा अर्चना चलाना कठिन हो रहा है क्योंकि देसी घी और फूल आदि काफी महंगे हो गये हैं।
छह दिसम्बर 1992 को ध्वस्त हुए विवादित ढांचे के बाद बने अस्थायी मंदिर (मेकशिफ्ट स्ट्रक्चर) में रामलला की नियमित पूजा अर्चना और भोग आरती चल रही है। इसके लिये 43 हजार 600 रपये महीने स्वीकृत है। इसी पैसे में एक प्रधान पुजारी और चार सहायक पुजारियों को वेतन भी दिया जाता है।
प्रधान पुजारी को पांच हजार रपये मासिक मिलता है जबकि अन्य पुजारियों और कर्मचारियों को दो से तीन हजार रपये तक दिये जाते हैं। एक अनुमान के तहत 23 हजार रपये प्रतिमाह इन लोगों के वेतन पर ही खर्च हो जाते है।
रामलला की प्रतिदिन पांच बार आरती होती है। भोग में पेड़ा जैसी महंगी मिठाइयां चढ़ती हैं। प्रत्येक आरती देसी घी से ही की जाती है। श्री दास का कहना है कि घी काफी महंगी हो गयी है। इसलिए पूजा अर्चना के लिए पैसा और बढ़ाना चाहिए।
दिलचस्प बात यह है कि मेकशिफ्ट स्ट्रक्चर के पास रखे दानपात्नों में करीब डेढ़ लाख रपये प्रतिमाह एकत्न होता है। यह पैसा सरकारी खजाने में जमा होता है। यह पहला मौका नहीं है जब प्रधान पुजारी ने वेतन और पूजा अर्चना के पैसे बढ़ाने की मांग की है। श्री दास ने बताया कि समय समय पर उनके वेतन में वृद्धि की गयी है।
उन्होंने स्वीकार किया कि दो साल पहले उन लोगों का वेतन बढ़ाया गया था। उनका कहना है कि दानपात्नों से मिलने वाले पैसे से ही रामलला की पूजा-अर्चना और उन लोगों के वेतन आदि का खर्च निकल सकता है।
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