वोटिंग मशीन की तकीनीकी खामियों और हैकिंग की संभावना के पक्के सुबूत दुनिया के सामने रखने वाले कंप्यूटर वैज्ञानिक हरि प्रसाद को बिना कारण गिरफ्तार कर लिया गया है, और उनसे कड़ी पूछताछ जारी है. फ़िलहाल उनपर वैधानिक रूप से कोई मामला नहीं है, गिरफ़्तारी का आधार यही है की वे यह बताने तैयार नहीं है की मशीन उन्हें किसने दी.
उन्हें उनके हैदराबाद स्थित आवास से उठाकर, मुंबई ले जाया गया. विरोध जताने पर अधिकारीयों ने इतना ही कहा की 'हमारे हाथ बंधे हुए हैं, हमपर ऊपर से भारी दबाव हैं. '
हरीप्रसाद ने अगर कोर्ट में अर्जी दायर कर वोटिंग मशीन पाने की कोशिश की होती तो उन्हें दस से पंद्रह साल इंतजार करना पड़ता. न्याय व्यवस्था की उलटबन्सियों को देखते हुए हैरत नहीं होगी की इस मामले में कोर्ट हरिप्रसाद को ही चोरी, ऑफिशियल सीक्रेट एक्ट और सायबर कानून के अंतर्गत अपराधी ठहरा दे, और दस साल के लिए जेल में सड़ने भेज दे.
आज के हालत में ऐसा लगता है अगर हरिप्रसाद को रिमांड में ही यातना देकर मार डाला जाए, तो कही कोई आवाज़ तक नहीं होगी. न कोई अख़बार इस उनके हिरासत से लापता हो जाने को उठाएगा न ही कोई चैनल इसका फालोअप लेगा. महीने भर में यह खबर भी दब जाएगी, और पूरी सम्भावना है की अगले चुनाव भी बिलकुल इन्ही (कु)व्यस्थाओं और सुरक्षा खामियों के साथ होंगे.
इस ईवीएम् के नाम पर चल रही धोखेबाज़ी के बारे में लोगों को २००४ से ही शक था. २००९ बीतते बीतते इसमें संदेह की गुंजाईश नहीं रही, भारत की न्याय व्यवस्था कितनी कार्यसक्षम और पारदर्शी है यह जानते हुए भी अडवाणी जी कहते रहे की हमने याचिका दायर की है, हमें कोर्ट के निर्णय का इंतजार है.
चुनाव आयोग सरकार की घर की खेती है, कोर्ट के निर्णय पर भी सरकार अड़ंगे लगा सकती है, लगाती ही रही है. जबकि ऐसे मामले को आन्दोलन के ज़रिये जनता में ले जाना सबसे प्रभावी तरीका था.
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