लेकिन विवादित स्थल के प्रमुख दावेदारों ने इसका विरोध किया है और वे अदालत के पूर्व निर्धारित तिथि 24 सितंबर को फैसला सुनाए जाने के पक्ष में हैं। मुकदमे के एक प्रतिवादी रमेशचंद्र त्रिपाठी ने अपने प्रार्थनापत्र में 1994 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक पैराग्राफ का उल्लेख किया है, जिसमें कहा गया है कि इस तरह का संवेदनशील विवाद आपसी बातचीत और सहमति से तय होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी केंद्र सरकार के इस सवाल को नामंजूर करते हुए की थी जिसमें अदालत से पूछा गया था कि उस विवादित स्थान पर पहले कोई मंदिर को तो़डकर मस्जिद बनाई गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को हाईकोर्ट को निर्णय के लिए वापस भेज दिया था।
सुप्रीम कोर्ट की इस 16 साल पुरानी टिप्पणी का हवाला देते हुए प्रार्थनापत्र में आशंका व्यक्त की गई है कि कोर्ट का फैसला आने से देश में हिंसा भ़डक सकती है। प्रार्थना पत्र में कहा गया है कि इस अदालत ने स्वयं भी सुनवाई पूरी होने के बाद 27 जुलाई को आपसी सहमति से मामला हल करने का प्रयास किया था, जो विफल रहा। लेकिन अदालत ने कहा था कि मुकदमे के वादी-प्रतिवादी कभी भी समझौते से मामला हल कर सकते हैं।
इसमें सिविल प्रोसीजर कोड की धारा 89 का हवाला दिया गया है कि अदालत ऎसे मामलों का वादियों की परस्पर सहमति से हल करवाने का प्रयास कर सकती है। मगर मुकदमे के एक पक्षकार हिंदू महासभा के वकील हरिशंकर जैन का कहना है कि अब समझौते से मामले हल करने की कोई गुंजाइश नहीं है।
हरिशंकर जैन ने कहा, हिंदू पक्ष यह साफ कर चुका है कि चूंकि यह राम जन्मभूमि का मामला है इसलिए इसकी एक इंच जमीन भी समझौता नहीं हो सकता। इस समझौते के पीछे कोई राजनीतिक साजिश है जो नहीं चाहती कि यहां कानून का राज हो और अदालत अपना काम कर सके और फैसला दे सके।
हिंदू महासभा के अलावा सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने भी अदालत को लिखकर दे दिया है कि अब फैसला टालने का कोई कारण नहीं बनता। बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति के पूर्व संयोजक मोहम्मद आजम खान ने समझौते की बात को एक मजाक बताया और कहा कि अदालत को कानून के मुताबिक अपना फैसला देना चाहिए। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अदालत का जो भी फैसला आए, किसी को उस पर बहुत उत्साह या नाराजगी नहीं प्रकट करनी चाहिए और संयम बरतना चाहिए।
अभी यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी जाएगा। विवादित स्थल के अन्य प्रमुख दावेदार निर्मोही अख़ाडे के वकील रणजीतलाल वर्मा ने कहा कि प्रतिवादी रमेश त्रिपाठी की भावना अच्छी है, मगर समझौते के लिए अब बहुत देर हो चुकी है। इस मामले में नया पेंच यह है कि मामले की सुनवाई कर रही विशेष पीठ के एक जज धर्मवीर शर्मा एक अक्टूबर को रिटायर हो रहे हैं, अगर किसी वजह से फैसला तब तक टाल दिया जाता है, तो पूरे मामले की सुनवाई फिर से करनी प़डेगी।
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