अयोध्या मसले पर इस महीने की 24 तारीख को आने वाले फैसले को स्थगित करने के लिए दायर याचिका को खारिज करने वाली इलाहाबाद उच्च न्यायालय की तीन सदस्यीय खण्डपीठ के एक सदस्य ने साथी न्यायाधीशों से असहमति जताते हुए प्रस्तावित फैसले को स्थगित करने को कहा है।
गत 17 सितम्बर के फैसले पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले न्यायमूर्ति डी. वी. शर्मा ने कहा कि मसले का अदालत के बाहर समाधान ढूंढ़ने की अब भी कोशिश की जानी चाहिए। पीठ के तीसरे न्यायाधीश न्यायमूर्ति धर्मवीर शर्मा ने कहा कि फैसला दिए जाने से पहले तक इस मामले में सुलह-सफाई का रास्ता अपनाया जा सकता है। पिछले सप्ताह प्रस्तावित फैसले को स्थगित करने संबंधी एक अपील को अदालत ने खारिज कर दिया था।
शर्मा ने अपने आदेश में कहा कि इस प्रकार के प्रार्थनापत्र को सभी अथवा किसी कोण से देखते हुए सिर्फ यही निर्देश दिए जाने योग्य है कि फैसला सुनाए जाने की तारीख से पहले विवाद को समझौते के जरिये सुलझने के लिए पक्षकार स्वतंत्र हैं। न्यायमूर्ति शर्मा ने अपने आठ पृष्ठीय आदेश में यह भी कहा कि दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 35-ए के तहत अदालत तीन हजार रुपए से ज्यादा का जुर्माना नहीं लगा सकती। गत 17 सितंबर को राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवादित स्थल के मालिकाना हक संबंधी याचिकाओं की सुनवाई कर रही पीठ के दो न्यायाधीशों न्यायमूर्ति एसयू खां और न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल ने रमेश चन्द्र त्रिपाठी की विवाद को सुलह-समझौते से हल करने के लिए दायर अर्जी को ‘शरारतपूर्ण कृत्य’ बताते हुए खारिज कर दिया था और अर्जीदाता पर 50 हजार रुपए का हर्जाना लगाया था। इस फैसले से 60 साल पुराने विवाद का फैसला 24 सितम्बर को आना तय हो गया था।
न्यायमूर्ति शर्मा ने अपने आदेश में यह भी कहा कि मुझे यह कहते हुए अफसोस है कि 17 सितम्बर को आदेश पारित करते समय मुझसे सलाह मशविरा नही किया गया, अन्यथा मै माननीय न्यायमूर्तियों को अपना भी मत देता। न्यायमूर्ति ने सुलह सफाई के लिये विचार विमर्श की हिमायत करते हुए कहा कि इस प्रकार के प्रार्थनापत्र को सभी अथवा किसी भी कोण से देखते हुए सिर्फ यही निर्देश दिये जाने योग्य है कि फैसला सुनाये जाने की तारीख से पहले विवाद को समसे सुलके लिए पक्षकार स्वतंत्र हैं और इस स्तर पर अदालत के हस्तक्षेप की कोई जरूरत नहीं है। अर्जीकर्ता प्रतिवादी संख्या 17 को 50 हजार रुपएहर्जाना देने की जरुरत नही है और तदनुसार प्रार्थनापत्र को निस्तारित कर दिया। रमेश चन्द्र त्रिपाठी ने 13 सितम्बर को न्यायालय की विशेष पीठ मे अर्जी देकर रामजन्म भूमि बाबरी मस्जिद विवादित परिसर के मालिकाना हक संबंधी विवाद को आपसी सुलह समके जरिये हल किये जाने एवं फिलहाल इस बाबत विशेष पीठ के फैसले की तारीख को बढाये जाने का अनुरोध किया था।
अयोध्या में विवादित रामजन्मभूमि -बाबरी मस्जिद स्थल पर स्वामित्व को लेकर पहला मुकदमा 1950 में गोपाल विशारद की तरफ से दाखिल हुआ था। उसके बाद इसमें निर्मोही अखाड़े, सुन्नी वक्फ बोर्ड और रामलला विराजमान की तरफ से भी मुकदमे दर्ज किए गए। अदालत ने उक्त चारों मुकदमों में 26 जुलाई को अपनी सुनवाई पूरी करके फैसला सुरक्षित रख लिया था और 27 जुलाई को सभी पक्षों को बुलाकर उनसे कहा था कि यदि वे मामले को आपसी बातचीत से तय करने का प्रयास करना चाहते हैं तो अदालत के निर्णय से पहले अदालत के विशेष कार्याधिकारी को उसके बारे में सूचित कर सकते हैं। मामले की सुनवाई कर रही तीन सदस्यीय विशेष पीठ ने अपना निर्णय सुरक्षित रखने के लगभग डेढ़ महीने बाद आठ सितंबर को यह निर्णय लिया था कि फैसला 24 सितंबर को सुनाया जायेगा।
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