हंसराज भारद्वाज का रिश्ता आगरा, पंजाब, मध्यप्रदेश व हरियाणा की राजनीति से रहा है और ठीक-ठाक वकीलों में भी उनकी गिनती होती है। वे सिद्धार्थ सेन के बाद भारत के कानून मंत्रालय में सबसे लंबे समय तक रहने वाले विधि मंत्री भी रहे हैं।
फिलहाल वे कर्नाटक के राज्यपाल हैं और उन्होंने वहां की सरकार को फिर से बहुमत सिद्ध करने का निर्देश दिया है। सोमवार को तो उन्होंने केंद्र सरकार से कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश भी कर दी थी। उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा ने जो विश्वासमत विधानसभा में अर्जित किया है, वह फर्जी है।
इन्हीं हंसराज भारद्वाज ने गोवा और झारखंड में इससे भी बुरे विश्वासमत अर्जित करने के तरीके को न्यायपूर्ण ठहराया था, क्योंकि उनको लगता है कि उनसे ज्यादा न्याय की जानकारी किसी और को नहीं है। कानून की जानकारी के अलावा हंसराज भारद्वाज की सबसे बडी प्रतिभा आलाकमान के चरण-चुंबन करने की रही है। प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढने और मंगलवार को दारू नहीं पीने वाले हंसराज भारद्वाज के कर्मकांड दस जनपथ तक पहुंचकर समाप्त हो जाते हैं और हाल ही में आपने वह फोटो भी देखा होगा, जब चालीस साल के राहुल गांधी की कर्नाटक यात्रा के दौरान करीब 74 साल के हंसराज भारद्वाज लगभग 90 अंश के कोण पर झुके हुए नजर आ रहे थे, कांग्रेस के युवराज के ठीक सामने।हंसराज भारद्वाज ने राजनीति में या प्रशासन में या न्यायपालिका के लिए जो करना पडा, सो किया, लेकिन इतना ऐतिहासिक कुछ भी नहीं किया, जिसके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाए।
उन्हें याद रखा जाएगा, तो बोफोर्स कांड के मुख्य अभियुक्त ओट्टाबियो क्वात्रोच्चि को लगभग निर्दोष करार दे देने के लिए ही। आखिर सीबीआई जांच कर ही रही थी और आमतौर पर लोहे की दीवार से घिरे रहने वाले स्विस बैंकों तक ने क्वात्रोच्चि के दो खातों के नंबर भारत को दे दिए थे,फिर भी हंसराज भारद्वाज को पता नहीं क्या सूझी थी कि उन्होंने सीबीआई के एक अधिकारी को अपने एक कानूनी अधिकारी के साथ लंदन भेजा और लंदन की अदालत में अर्जी देकर भारत सरकार ने अपने ही एक मोस्ट वांटेड अभियुक्त के सारे सील किए हुए खाते खोलने की अपील कर डाली थी।
यानी, आज्ञाकारी होने और वफादारी दिखाने के लिए आलाकमान के सामने बार-बार झुकने में हंसराज भारद्वाज को कभी कोई दिक्कत नहीं आती और कद का फायदा यह मिलता है कि उन्हें झुकने में ज्यादा तकलीफ नहीं उठानी पडती। अब तो वे सीधे खडे होते हैं, तो भी झुके हुए ही नजर आते हैं। बहरहाल, हंसराज भारद्वाज हरियाणा के रोहतक जिले के गडी गांव में पैदा हुए थे और आगरा तथा पंजाब के जालंधर से उन्होंने पढाई की थी। वकालत की पढाई के बाद दिल्ली की तीस हजारी अदालत में किराए के स्टूल और मेज पर बैठकर बहुत मेहनत से वकालत शुरू करने वाले हंसराज भारद्वाज राजनीति में भी आए, क्योंकि उनके पिता जगन्नाथ प्रसाद भारद्वाज देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के टाइपिस्ट थे।
हंसराज भारद्वाज जब कानून की पढाई कर रहे थे, तभी उनके पिताजी स्वर्ग सिधार गए थे और काफी मेहनत करके हंसराज साहब ने वकालत की पढाई पूरी की थी, पर पिताजी के पुण्यों का लाभ तो उन्हें मिलना ही था। दिल्ली की तीस हजारी अदालत की वकालत से समय निकालकर एक दिन वे इंदिराजी के पास पहुंचे और अपने पिताजी द्वारा की गई नेहरूजी की सेवा की याद दिलाई। उन्होंने इंदिराजी के सामने खुद को अनाथ की तरह पेश किया और तीस हजारी अदालत के वकील का प्रवेश इंदिरा गांधी के परिवार में हो गया। आपातकाल के बाद जनता सरकार के दौरान संजय गांधी पर चले मुकदमों की पैरवी हंसराज भारद्वाज ने ही की थी।
ये मुकदमे जनता सरकार द्वारा प्रतिशोध की भावना से हडबडी में तैयार किए गए थे, इसलिए अदालत में टिक नहीं पाए और इसका श्रेय हंसराज भारद्वाज को मिल गया। आजकल हंसराज भारद्वाज के बेटे अरुण भारद्वाज श्रीमती सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट बडेरा और बेटी प्रियंका गांधी के भी वकील हैं। मतलब, मक्खनबाजी खानदानी कारोबार है।कर्नाटक में भी हंसराज भारद्वाज ने जो किया, उसके कानूनी आधार चाहे जो हों, लेकिन दस जनपथ को प्रसन्न करने का कोई अवसर वे छोडना नहीं चाहते। उनके नाम कई बडे विवादों से भी जुडे हुए हैं। आपको याद होगा कि यूपीए की पिछली सरकार में आमतौर पर मुस्कराती रहने वालीं अंबिका सोनी ने भारत सरकार की ओर से बयान दे दिया था कि राम थे भी या नहीं, इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।
यह बात अंबिका सोनी कोई अपने मन से नहीं बोल रही थीं। उनका बडे से बडा दुश्मन भी उन पर इतिहासकार होने का आरोप नहीं लगा सकता।अंबिका सोनी ने वही कहा था, जो हंसराज भारद्वाज के विधि मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय को भारत सरकार की ओर से तैयार एक शपथ पत्र में लिखकर दिया था। इसके बाद लाभ के पद वाला जो विधेयक कानून बनाने के लिए हंसराज भारद्वाज लेकर आए थे, उसमें राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष के तौर पर सांसद सोनिया गांधी सीधे फंस गई थीं और उन्हें लोकसभा से त्याग-पत्र देकर फिर से चुनाव लडना पडा था। तब तक आज्ञाकारी और चरणों के दास हंसराज भारद्वाज ने कानून में एक ऐसा प्रावधान जोड ही दिया था कि आइंदा सोनिया गांधी को दोबारा फिर इस तरह की दिक्कत में न फंसना पडे।इन्होंने कर्नाटक जाकर भी कम गुल नहीं खिलाए हैं।
विधानसभा के अध्यक्ष को आज्ञा देना तो छोटा-सा कारनामा है। इसके पहले कर्नाटक के तीन मंत्रियों को भी वे सफाई देने के लिए राजभवन में हाजिर होने का आदेश दे चुके हैं और जब तीनों मंत्रियों ने अपने-अपने वकील भेज दिए, तो भारद्वाज ने चुनाव आयोग से कहा कि इन तीनों को हटाया जाए। चुनाव आयोग के तत्कालीन प्रमुख नवीन चावला ने 25 दिन की देरी की और फिर जवाब दिया कि मंत्रियों को हटाने का कोई प्रावधान नहीं है, तो उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर नवीन चावला को हटाने की ही सिफारिश कर डाली थी।हंसराज भारद्वाज यूपीए द्वितीय सरकार में भी मंत्री ही रहना चाहते थे, लेकिन सोनिया गांधी की सिफारिश पर उनकी योग्यता और पुरानी वफादारियां देखते हुए उन्हें भाजपा शासित कर्नाटक में राज्यपाल बनाकर भेजा गया।
वे अति-उत्साह से भरे हुए थे और उन्होंने एक तरह से केंद्र सरकार को कुछ समय के लिए ही सही, लेकिन धर्म संकट में तो डाल ही दिया है, कर्नाटक सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश करके। लगता है कि येद्दियुरप्पा को फिर से बहुमत सिद्ध करने का उन्होंने जो निर्देश दिया है, उसके पीछे केंद्र सरकार ही होगी। आखिर, उसे तो हंसराज द्वारा खडे किए हुए धर्मसंकट से निपटना ही था, पर देश समझ गया कि कर्नाटक के राज्यपाल कितने महान हैं।
--आलोक तोमर
फिलहाल वे कर्नाटक के राज्यपाल हैं और उन्होंने वहां की सरकार को फिर से बहुमत सिद्ध करने का निर्देश दिया है। सोमवार को तो उन्होंने केंद्र सरकार से कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश भी कर दी थी। उन्होंने कहा था कि मुख्यमंत्री येद्दियुरप्पा ने जो विश्वासमत विधानसभा में अर्जित किया है, वह फर्जी है।
इन्हीं हंसराज भारद्वाज ने गोवा और झारखंड में इससे भी बुरे विश्वासमत अर्जित करने के तरीके को न्यायपूर्ण ठहराया था, क्योंकि उनको लगता है कि उनसे ज्यादा न्याय की जानकारी किसी और को नहीं है। कानून की जानकारी के अलावा हंसराज भारद्वाज की सबसे बडी प्रतिभा आलाकमान के चरण-चुंबन करने की रही है। प्रतिदिन हनुमान चालीसा पढने और मंगलवार को दारू नहीं पीने वाले हंसराज भारद्वाज के कर्मकांड दस जनपथ तक पहुंचकर समाप्त हो जाते हैं और हाल ही में आपने वह फोटो भी देखा होगा, जब चालीस साल के राहुल गांधी की कर्नाटक यात्रा के दौरान करीब 74 साल के हंसराज भारद्वाज लगभग 90 अंश के कोण पर झुके हुए नजर आ रहे थे, कांग्रेस के युवराज के ठीक सामने।हंसराज भारद्वाज ने राजनीति में या प्रशासन में या न्यायपालिका के लिए जो करना पडा, सो किया, लेकिन इतना ऐतिहासिक कुछ भी नहीं किया, जिसके लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाए।
उन्हें याद रखा जाएगा, तो बोफोर्स कांड के मुख्य अभियुक्त ओट्टाबियो क्वात्रोच्चि को लगभग निर्दोष करार दे देने के लिए ही। आखिर सीबीआई जांच कर ही रही थी और आमतौर पर लोहे की दीवार से घिरे रहने वाले स्विस बैंकों तक ने क्वात्रोच्चि के दो खातों के नंबर भारत को दे दिए थे,फिर भी हंसराज भारद्वाज को पता नहीं क्या सूझी थी कि उन्होंने सीबीआई के एक अधिकारी को अपने एक कानूनी अधिकारी के साथ लंदन भेजा और लंदन की अदालत में अर्जी देकर भारत सरकार ने अपने ही एक मोस्ट वांटेड अभियुक्त के सारे सील किए हुए खाते खोलने की अपील कर डाली थी।
यानी, आज्ञाकारी होने और वफादारी दिखाने के लिए आलाकमान के सामने बार-बार झुकने में हंसराज भारद्वाज को कभी कोई दिक्कत नहीं आती और कद का फायदा यह मिलता है कि उन्हें झुकने में ज्यादा तकलीफ नहीं उठानी पडती। अब तो वे सीधे खडे होते हैं, तो भी झुके हुए ही नजर आते हैं। बहरहाल, हंसराज भारद्वाज हरियाणा के रोहतक जिले के गडी गांव में पैदा हुए थे और आगरा तथा पंजाब के जालंधर से उन्होंने पढाई की थी। वकालत की पढाई के बाद दिल्ली की तीस हजारी अदालत में किराए के स्टूल और मेज पर बैठकर बहुत मेहनत से वकालत शुरू करने वाले हंसराज भारद्वाज राजनीति में भी आए, क्योंकि उनके पिता जगन्नाथ प्रसाद भारद्वाज देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के टाइपिस्ट थे।
हंसराज भारद्वाज जब कानून की पढाई कर रहे थे, तभी उनके पिताजी स्वर्ग सिधार गए थे और काफी मेहनत करके हंसराज साहब ने वकालत की पढाई पूरी की थी, पर पिताजी के पुण्यों का लाभ तो उन्हें मिलना ही था। दिल्ली की तीस हजारी अदालत की वकालत से समय निकालकर एक दिन वे इंदिराजी के पास पहुंचे और अपने पिताजी द्वारा की गई नेहरूजी की सेवा की याद दिलाई। उन्होंने इंदिराजी के सामने खुद को अनाथ की तरह पेश किया और तीस हजारी अदालत के वकील का प्रवेश इंदिरा गांधी के परिवार में हो गया। आपातकाल के बाद जनता सरकार के दौरान संजय गांधी पर चले मुकदमों की पैरवी हंसराज भारद्वाज ने ही की थी।
ये मुकदमे जनता सरकार द्वारा प्रतिशोध की भावना से हडबडी में तैयार किए गए थे, इसलिए अदालत में टिक नहीं पाए और इसका श्रेय हंसराज भारद्वाज को मिल गया। आजकल हंसराज भारद्वाज के बेटे अरुण भारद्वाज श्रीमती सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट बडेरा और बेटी प्रियंका गांधी के भी वकील हैं। मतलब, मक्खनबाजी खानदानी कारोबार है।कर्नाटक में भी हंसराज भारद्वाज ने जो किया, उसके कानूनी आधार चाहे जो हों, लेकिन दस जनपथ को प्रसन्न करने का कोई अवसर वे छोडना नहीं चाहते। उनके नाम कई बडे विवादों से भी जुडे हुए हैं। आपको याद होगा कि यूपीए की पिछली सरकार में आमतौर पर मुस्कराती रहने वालीं अंबिका सोनी ने भारत सरकार की ओर से बयान दे दिया था कि राम थे भी या नहीं, इसका कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।
यह बात अंबिका सोनी कोई अपने मन से नहीं बोल रही थीं। उनका बडे से बडा दुश्मन भी उन पर इतिहासकार होने का आरोप नहीं लगा सकता।अंबिका सोनी ने वही कहा था, जो हंसराज भारद्वाज के विधि मंत्रालय ने सर्वोच्च न्यायालय को भारत सरकार की ओर से तैयार एक शपथ पत्र में लिखकर दिया था। इसके बाद लाभ के पद वाला जो विधेयक कानून बनाने के लिए हंसराज भारद्वाज लेकर आए थे, उसमें राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष के तौर पर सांसद सोनिया गांधी सीधे फंस गई थीं और उन्हें लोकसभा से त्याग-पत्र देकर फिर से चुनाव लडना पडा था। तब तक आज्ञाकारी और चरणों के दास हंसराज भारद्वाज ने कानून में एक ऐसा प्रावधान जोड ही दिया था कि आइंदा सोनिया गांधी को दोबारा फिर इस तरह की दिक्कत में न फंसना पडे।इन्होंने कर्नाटक जाकर भी कम गुल नहीं खिलाए हैं।
विधानसभा के अध्यक्ष को आज्ञा देना तो छोटा-सा कारनामा है। इसके पहले कर्नाटक के तीन मंत्रियों को भी वे सफाई देने के लिए राजभवन में हाजिर होने का आदेश दे चुके हैं और जब तीनों मंत्रियों ने अपने-अपने वकील भेज दिए, तो भारद्वाज ने चुनाव आयोग से कहा कि इन तीनों को हटाया जाए। चुनाव आयोग के तत्कालीन प्रमुख नवीन चावला ने 25 दिन की देरी की और फिर जवाब दिया कि मंत्रियों को हटाने का कोई प्रावधान नहीं है, तो उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय को पत्र लिखकर नवीन चावला को हटाने की ही सिफारिश कर डाली थी।हंसराज भारद्वाज यूपीए द्वितीय सरकार में भी मंत्री ही रहना चाहते थे, लेकिन सोनिया गांधी की सिफारिश पर उनकी योग्यता और पुरानी वफादारियां देखते हुए उन्हें भाजपा शासित कर्नाटक में राज्यपाल बनाकर भेजा गया।
वे अति-उत्साह से भरे हुए थे और उन्होंने एक तरह से केंद्र सरकार को कुछ समय के लिए ही सही, लेकिन धर्म संकट में तो डाल ही दिया है, कर्नाटक सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश करके। लगता है कि येद्दियुरप्पा को फिर से बहुमत सिद्ध करने का उन्होंने जो निर्देश दिया है, उसके पीछे केंद्र सरकार ही होगी। आखिर, उसे तो हंसराज द्वारा खडे किए हुए धर्मसंकट से निपटना ही था, पर देश समझ गया कि कर्नाटक के राज्यपाल कितने महान हैं।
--आलोक तोमर
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