सर्वोच्च न्यायालय ने बहुचर्चित प्रियदर्शिनी मट्टू हत्या कांड के दोषी संतोष कुमार सिंह की मौत की सजा को कम करके उम्रकैद में बदल दिया है।
गौरतलब है कि प्रियदर्शनी ने संतोष के खिलाफ छह साल से तंग करने की रिपोर्ट पुलिस में भी लिखवाई थी। लेकिन सीनियर आईपीएस अधिकारी के बेटे संतोष ने इसकी कभी परवाह नहीं की। हत्या के बाद उस समय संतोष को गिरफ्तार तो कर लिया गया। लेकिन ये मामला कानूनी पचडे में फंस गया। आखिरकार 3 दिसंबर 1999 को निचली अदालत ने संतोष को दोषी बताने के बावजूद सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। अपने फैसले में अदालत ने साफ-साफ कहा था कि लगता है पुलिस का ध्यान आरोपी को सजा दिलवाने में नहीं, बल्कि उसे बचाने में है। बाद में निचली अदालत के इस फैसले को सीबीआई ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने संतोष को फांसी की सजा सुनाई। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को उसकी लापरवाहियो, केस में जानबूझकर बरती गई ढिलाई और प्रियदर्शिनी को सुरक्षा देने में नाकामी को लेकर जम कर फटकार भी लगाई थी। सीबीआई के अनुसार, संतोष ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ कर रही स्टूडेंट प्रियदर्शनी मट्टू की जनवरी 1996 में बलात्कार के बाद हत्या कर दी थी।
गौरतलब है कि प्रियदर्शनी ने संतोष के खिलाफ छह साल से तंग करने की रिपोर्ट पुलिस में भी लिखवाई थी। लेकिन सीनियर आईपीएस अधिकारी के बेटे संतोष ने इसकी कभी परवाह नहीं की। हत्या के बाद उस समय संतोष को गिरफ्तार तो कर लिया गया। लेकिन ये मामला कानूनी पचडे में फंस गया। आखिरकार 3 दिसंबर 1999 को निचली अदालत ने संतोष को दोषी बताने के बावजूद सबूतों के अभाव में बरी कर दिया। अपने फैसले में अदालत ने साफ-साफ कहा था कि लगता है पुलिस का ध्यान आरोपी को सजा दिलवाने में नहीं, बल्कि उसे बचाने में है। बाद में निचली अदालत के इस फैसले को सीबीआई ने हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने संतोष को फांसी की सजा सुनाई। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को उसकी लापरवाहियो, केस में जानबूझकर बरती गई ढिलाई और प्रियदर्शिनी को सुरक्षा देने में नाकामी को लेकर जम कर फटकार भी लगाई थी। सीबीआई के अनुसार, संतोष ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से लॉ कर रही स्टूडेंट प्रियदर्शनी मट्टू की जनवरी 1996 में बलात्कार के बाद हत्या कर दी थी।
0 comments :
Post a Comment