पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती प्रखंड देगंगा में जिहादियों का जो उत्पात पिछले दिनों हुआ, उसे हमारे सेकुलर मीडिया ने नजरंदाज किया। कल्पना करें कि इस मामले में पीडि़त अगर तथाकथित अल्पसंख्यक होते तो आज सेकुलर मीडिया आसमान सर पर उठा लेता। किंतु देदंगा के पीडि़त हिंदू हैं इसलिए किसी को उनकी परवाह नहीं है। पश्चिम बंगाल के उत्तर चौबीस परगना जिले के देगंगा प्रखंड में गत 6 से 8 सितंबर तक जिहादियों ने जमकर उत्पात मचाया था। इस मामले में अब साफ तौर पर दो नाम सामने आए हैं जिन्होंने जिहादियों को उकसाया और उनका नेतृत्व किया। वे हैं तृणमूल कांग्रेस के सांसद हाजी नूरूल इस्लाम और एक स्थानीय अपराधी मकलुकर रहमान। इस पूरे इलाके से हिंदुओं को भगाने के लिए यह सारे षडयंत्र चल रहे हैं। इसके चलते इस बार देगंगा की 24 पूजा पंडाल समितियों ने दुर्गा पूजा न मनाने का फैसला किया है। यह कहने की बात नहीं है कि पश्चिम बंगाल के समाज जीवन में इस पूजा का क्या स्थान है। जो जांच हो रही है उसके शुरूआती निष्कर्ष यही हैं कि कट्टरवादी जिहादी मुस्लिम तत्व पूरी तरह से भारत –बंगलादेश सीमा से हिंदुओं को खदेड़ देना चाहते हैं ताकि सीमा के दोनों ओर घुसपैठियों का आगमन बेरोकटोक हो सके और तस्करी का धंधा भी फलफूल सके।
इस इलाके में हूजी और सिमी जैसे संगठनों की सक्रियता ने भी हालात बदतर किए हैं। प्रतिबंधित होने के बावजूद इस इलाके में उनकी गतिविधियां जारी है। इलाके में विस्फोटक हालात होने के बावजूद हमारी सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं क्योंकि उनके लिए वोट बैंक से बड़ा कुछ भी नहीं है। देश का देशभक्त समाज अपने त्यौहार न मना सके पर सरकार को इससे फर्क नहीं पड़ता। सीमावर्ती इलाकों में इस तरह का उत्पात देश की सुरक्षा के लिए एक बेहद चिंता जनक बात है किंतु हमारी सरकार को इससे फर्क नहीं पड़ता।
पांच साल और वोट बैंक के आगे न देखने वाली राजनीति को इससे क्या फर्क पड़ता है कि समाज का देशभक्त वर्ग कितने संकटों से जूझते हुए अपना जीवन यापन कर रहा है। पश्चिम बंगाल की सरकार ने, न ही केंद्रीय सरकार ने इस क्षेत्र की स्थितियों पर कोई ध्यान दिया है। सेकुलर मीडिया तो वैसे भी हिंदू उत्पीडऩ के सवालों से मुंह चुराता रहा है। हिंदु उत्पीडऩ दरअसल उनके लिए कोई खबर नहीं है।
ऐसे कठिन समय में जब देश के सीमावर्ती इलाकों में देशविरोधी गतिविधियां बढ़ रही हैं क्या हमारी सरकारों का कर्तव्य नहीं है कि वे इन हालात को संभालने के लिए आगे आएं। ताकि सीमांत क्षेत्रों से हिंदुओं को भगाने का षडयंत्र रोका जा सके।
इस इलाके में हूजी और सिमी जैसे संगठनों की सक्रियता ने भी हालात बदतर किए हैं। प्रतिबंधित होने के बावजूद इस इलाके में उनकी गतिविधियां जारी है। इलाके में विस्फोटक हालात होने के बावजूद हमारी सरकारें हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं क्योंकि उनके लिए वोट बैंक से बड़ा कुछ भी नहीं है। देश का देशभक्त समाज अपने त्यौहार न मना सके पर सरकार को इससे फर्क नहीं पड़ता। सीमावर्ती इलाकों में इस तरह का उत्पात देश की सुरक्षा के लिए एक बेहद चिंता जनक बात है किंतु हमारी सरकार को इससे फर्क नहीं पड़ता।
पांच साल और वोट बैंक के आगे न देखने वाली राजनीति को इससे क्या फर्क पड़ता है कि समाज का देशभक्त वर्ग कितने संकटों से जूझते हुए अपना जीवन यापन कर रहा है। पश्चिम बंगाल की सरकार ने, न ही केंद्रीय सरकार ने इस क्षेत्र की स्थितियों पर कोई ध्यान दिया है। सेकुलर मीडिया तो वैसे भी हिंदू उत्पीडऩ के सवालों से मुंह चुराता रहा है। हिंदु उत्पीडऩ दरअसल उनके लिए कोई खबर नहीं है।
ऐसे कठिन समय में जब देश के सीमावर्ती इलाकों में देशविरोधी गतिविधियां बढ़ रही हैं क्या हमारी सरकारों का कर्तव्य नहीं है कि वे इन हालात को संभालने के लिए आगे आएं। ताकि सीमांत क्षेत्रों से हिंदुओं को भगाने का षडयंत्र रोका जा सके।
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