यह हैरत की बात नहीं है कि अयोध्या पर अदालत का आदेश आने के बाद छाई रही शांति ने कुछ सेक्युलर वगरें को असंतुष्ट किया है। एक ओर हिंदू तथा मुस्लिम संगठनों ने समझदारी और संयम से काम लिया तो दूसरी ओर कतिपय सेक्युलर नेता और काग्रेस के मंत्री और प्रवक्ता शात जल में पत्थर फेंकने की कोशिश कर रहे हैं। वे चाहते हैं कि कहीं न कहीं हिंदू मुस्लिम तनाव भड़कता रहे ताकि शांति स्थापित करने की उनकी दुकानदारी भी चलती रहे।
मुस्लिमों के बीच जाकर उन्हें हिंदू संगठनों के विरुद्ध भड़काने की कोशिश करते हुए वे अगले चुनावों की तैयारी में लगे दिखते हैं। मैंने पहले भी लिखा है कि भारत में हिंदू-मुस्लिम समाज आपस में अपने विवाद सुलझाने में सिद्ध होते हैं, पर अपने आपको सेक्युलर कहने वाले ही सबसे ज्यादा आग में घी डालने का काम करते हैं। पिछले दिनों गृह मंत्री चिदंबरम तथा काग्रेस के प्रवक्ताओं के बयान इसी श्रेणी में आते हैं। वे शायद अदालती निर्णय के बाद असमंजस में हैं कि उससे उनके मुस्लिम वोट बैंक पर कहीं नकारात्मक प्रभाव तो नहीं पड़ने वाला।
उनका देश वोट बैंक तक ही सीमित है।काग्रेस ने छह दिसंबर की बार-बार याद दिलाकर मुस्लिमों को प्रतिशोध के लिए उत्तेजित करने की कोशिश की है। पर उनको याद रखना चहिए कि अयोध्या का अर्थ हिंदू समाज के लिए सिर्फ एक मंदिर बनाने का कभी भी नहीं रहा है। राम मंदिर का अर्थ है भारतवर्ष के परम वैभव के लिए आवश्यक स्वाभिमान और शक्ति प्राप्त करना। जिस औपनिवेशिक कलुष ने भारत की मूल आत्मा और उसके मानस को जकड़ रखा है उससे मुक्ति के दूसरे स्वतंत्रता संघर्ष का नाम है अयोध्या। यदि कश्मीर घाटी में हिंदू शरणार्थी वापस नहीं जा पाते और देश में अभारतीय राजनीति का शिकंजा नहीं टूटता तो अयोध्या आंदोलन विफल माना जाएगा।
अयोध्या आंदोलन का अर्थ है दैहिक, दैविक और भौतिक तापों से मुक्ति पाना और राम राज्य के उस स्वर्णिम लक्ष्य की और बढ़ना जो महात्मा गाधी और डॉक्टर हेडगवार, दोनों का ही स्वप्न था। अयोध्या आंदोलन का अर्थ देश में से राजनीतिक और प्रशासनिक भ्रष्टाचार को खत्म कर उस आंदोलन को सफल परिणति तक पहुंचाना भी है जो जेपी के नेतृत्व में प्रारंभ हुआ था।काग्रेस को अयोध्या के उस तथाकथित अपराध की बार-बार याद दिलाना बड़ा प्रिय है जो उसकी निगाह में छह दिसंबर को हुआ था, पर कोई काग्रेस से पूछे कि देश के सैनिकों के साथ विश्वासघात का उसका अपराध क्षमायोग्य है? सन 47 में जब देश के सैनिक पूरी तत्परता से पाकिस्तानी हमले का जवाब दे रहे थे, तब जवाहर लाल नेहरू ने कृष्ण मेनन को तत्काल लंदन से जीपें खरीदने के आदेश दिए थे।
युद्ध खत्म हो गया, पकिस्तान एक-तिहाई से ज्यादा कश्मीर पर कब्जा कर बैठ गया, पर जीपें नहीं आईं। आजाद भारत का यह पहला बड़ा घोटाला था। उसके बाद जीवन बीमा घोटाला, सन 62 का शर्मनाक दौर, नेहरू का देश के साथ छल, अक्साई चिन पर चीन का कब्जा, तिब्बत प्रश्न पर नेहरू की नीतियों के कारण भारत की अपार सामरिक क्षति, कश्मीर में शेख और नेहरू की मिलीभगत और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमयी मृत्यु, जिसे अटलजी ने उस समय हत्या बताया था, मूंधरा कांड, नागरवाला घोटाला, ललित नारायण मिश्र की हत्या, श्रीलंका में शांति सेना की असफलता, बोफोर्स और पनडुब्बी कांड, सिखों का नरसंहार और अब गेहूं को सड़ा देना मंजूर पर गरीबों को बाटना अस्वीकार, ये सब उस काग्रेस के कारनामे हैं जिसने अयोध्या को राजनीति का खिलौना बनाने की भी कोशिश की थी।अयोध्या प्रश्न भारत की शांति और स्वाभिमान से जुड़ा प्रश्न है, जिसका न तो साप्रदायीकरण किया जाना चाहिए, न ही राजनीतिक वोट बैंक के लिए इस्तेमाल। यह वैसा ही प्रश्न है जैसे यदि अमेरिका में लिबर्टी की मूर्ति ओसामा के आतंकवादी ध्वस्त कर दें तो उसकी पुनर्प्रतिष्ठा का आंदोलन समूचे अमेरिका का आंदोलन होगा, न की इसाई जनता का किसी दूसरे संप्रदाय के विरुद्ध कोई आंदोलन। अयोध्या पूरे देश के हिंदू-मुसलमान के मध्य साझी विरासत का प्रतीक है।
इसीलिए भाजपा के अध्यक्ष नितिन गडकरी ने हिंदुओं की कार सेवा से सरयू पार मस्जिद बनाने की भी क्रातिकारी पेशकश की थी।देश गरीब रहे और एक नया मंदिर बन जाए तो भी बात नहीं बनेगी, देश के किसान आत्महत्या करने पर मजबूर होते रहें और एक मंदिर के लिए आंदोलन हो तो भी यह रामजी को स्वीकार्य नहीं होगा। अस्मिता जागरण और राष्ट्रीय स्वाभिमान की अलख पुन: जगाने का अर्थ है देश के हर व्यक्ति के विकास की संभावनाओं को बढ़ाना। शती, शौर्य और समृद्धि के बिना राम की पूजा अधूरी ही रहती है। जो लोग अपने आपको सेक्युलर कहते हुए अयोध्या को अपने वोट बैंक की राजनीति का उपकरण बनाना चाहते हैं वे इस देश की अस्मिता और भविष्य की पीढ़ी के साथ अन्याय कर रहे हैं।
इन दिनों मैं नीदरलैंड सरकार द्वारा आयोजित एक विमर्श में भाग लेने हेग गया हुआ हूं, जहां कश्मीरी हिंदुओं की दुर्दशा पर मुझे एक व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया है। मुझे इस बात का आश्चर्य है कि जिस महत्वपूर्व विषय पर एक विदेश के सरकारी तंत्र को दिलचस्पी हो सकती है उस पर सरकार ने बहस की जरूरत क्यों नहीं समझी? केवल पत्थरबाजों के साथ वार्ता, उनको जेल से निकाल कर मुआवजा देना और जो देशभक्त जनता है, उसकी उपेक्षा क्यों इस सेक्युलरवाद की निशानी बनती जा रही है।
इसने केवल हिंदू घावों पर नमक छिड़कना अपनी पहचान बना ली है। अयोध्या के बहाने इस आत्मदीनता को बढ़ाने वाले सेक्युलरवाद में आवश्यक सुधार कर उसे भारत समर्थक तथा सभी पंथों और संप्रदायों के प्रति समान दृष्टि रखने वाले सिद्धात में परिणत करना भी अयोध्या आंदोलन का एक हिस्सा है
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