अगर तुलसीदास ने रामचरित मानस आज लिखी होती तो वह साहित्यिक चोरी के मामले में जेल चले गए होते। उनकी रचना और कुछ नहीं बल्कि वाल्मीकि रामायण की नकल है।
यह बात जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) के प्रोफ़ेसर तुलसीराम ने दलित साहित्य पर आयोजित दो दिवसीय सेमिनार में कही। सेमिनार का आयोजन साहित्य अकादमी और पटना यूनिवर्सिटी हिन्दी विभाग ने संयुक्त रूप से किया है।
तुलसीराम ने कहा कि नकल होने के बावजूद तुलसीदास की रामचरित मानस काफी लोकप्रिय हुई। कट्टर हिंदू समाज ने इसे इसलिए लोकप्रिय बनाया क्योंकि इसे लिखने वाले तुलसीदास ब्राह्मण थे जबकि वाल्मीकि के दलित होने की वजह से उनकी रचना को अनदेखा कर दिया गया।
उन्होंने यह भी कहा कि प्राचीन काल की गुरुकुल व्यवस्था में सिर्फ ब्राह्मणों और राजपूतों के बच्चों को शिक्षा दी जाती थी। किसी भी गुरुकुल में दलित बच्चों को प्रवेश नहीं दिया जाता था। उन्होंने कहा कि उस समय के समाज ने दलितों वंचितों को शिक्षा से दूर रखने की साजिश के तहत ऐसी व्यवस्था को मंजूरी दी थी
रामचरितमानस यदि नक़ल है तो प्रोफ़ेसर साहब रामावतार चरित (कश्मीरी ) ,भावार्थ रामायण (मराठी) ,कथा रामायण (आसामी), रामावतार (पंजाबी), क्रित्तीवासी रामायण (बंगाली) , बलरामदास रामायण (ओरिया) .................................. को क्या कहेंगे ?
ReplyDeleteतुलसीराम ने कहा कि नकल होने के बावजूद तुलसीदास की रामचरित मानस काफी लोकप्रिय हुई। कट्टर हिंदू समाज ने इसे इसलिए लोकप्रिय बनाया क्योंकि इसे लिखने वाले तुलसीदास ब्राह्मण थे जबकि वाल्मीकि के दलित होने की वजह से उनकी रचना को अनदेखा कर दिया गया।
ReplyDelete(कश्मीरी ) ,भावार्थ रामायण (मराठी) ,कथा रामायण (आसामी), रामावतार (पंजाबी), क्रित्तीवासी रामायण (बंगाली) , बलरामदास रामायण (ओरिया) ..................................
ye sab bhi nakal matra hai sahab
चूंकि वाल्मीकि रामायण को समझ पाना सबके बस की बात नहीं है इसलिए क्षेत्रीय भाषाओँ में उसे रूपांतरित किया गया परन्तु हूबहू अनुवाद नहीं. कमसे कम दक्षिण में वाल्मीकि रामायण को ही श्रेष्ठ समझा जाता है. वाल्मीकि जैसे महापुरुष किसी जाति के बंधन से बहुत ऊपर हैं. श्री तुलसी राम जी की सोच संकीर्णता का आभास कराती है.
ReplyDeleteप्रश्न: प्रो. तुलसीराम ने क्या वाल्मीकि रामायण और रामचरितमानस को कभी स्वप्न में भी देखा है ???
ReplyDeleteउत्तर: नहीं | अन्यथा ये ऐसी बात स्वप्न में भी नहीं कहतें |
रही बात महर्षि वाल्मीकि के सम्मान की, तो आज भी महर्षि वाल्मीकि को भारतीय समाज में जो स्थान प्राप्त हैं वो इस कहावत से स्पष्ट हो जाती है |
उल्टा नाम जपत जग जाना , वाल्मीकि भये ब्रम्ह सामना|
शायद इसे तुलसीराम, क्षमा करें इस अज्ञानी को प्रो: कहने में शर्म आती है, ने सुना नहीं होगा |
professr bn jane se koi aadmi gyani nhi bn jata hai yeh sidh kar diya ish bevkuf pro. ne .............
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