जम्मू कश्मीर मुद्दे पर ईरान के लगातार आलोचनात्मक बयानों से खिन्न भारत ने आज इस्लामी गणराज्य के कार्यवाहक दूत को तलब कर कहा कि इस तरह की टिप्पणियां देश की क्षेत्रीय अखंडता की दृष्टि से प्रतिकूल हैं।
ईरान के ‘चार्ज डी अफेयर्स’ रजा अलाई को तल्ख विरोध संदेश देते हुए भारत ने इस्लामी गणराज्य की टिप्पणियों पर ‘गहरी निराशा’ जाहिर की और कहा कि ये टिप्पणियां क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के लिहाज से प्रतिकूल हैं।
‘जैसे को तैसा’ वाला रुख जाहिरा तौर पर अख्तियार करते हुए भारत कल देर रात ईरान में मानवाधिकार हनन के मुद्दे से संबंधित एक प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र में हुए मतदान से अनुपस्थित रहा। भारत ने पहली बार इस तरह का कदम उठाया। इससे पहले भारत ने हमेशा इस तरह के प्रस्ताव के खिलाफ मतदान किया है।
सूत्रों के मुताबिक, भारत ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है। ईरान की टिप्पणियां संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर मतदान से दूर रहने के भारत के फैसले का एक कारण रही। कनाडा तथा कई अन्य देशों ने यह प्रस्ताव पेश किया था।
विदेश मंत्रालय ने आधिकारिक रूप से प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए कहा, ‘‘मतदान पर हमारा फैसला उचित तरीके से विचार-विमर्श के बाद किया गया।’’ प्रस्ताव के समर्थन में जहां 80 देशों ने मतदान किया, वहीं 44 देशों ने विरोध में वोट डाले, जबकि 57 देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया।
सूत्रों के मुताबिक, बीती जुलाई से ईरान ने तीन बार कश्मीर में ‘आतंकवाद' का समर्थन किया है और जम्मू कश्मीर के हालात को गाजा तथा अफगानिस्तान के समान बताया है।
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