कांग्रेस पार्टी ने वर्ष 2012 में हो रहे विधानसभा चुनाव के लिए कारगर उम्मीदवारों की तलाश की जिम्मेदारी दस पर्यवेक्षकों को सौंपी है। इनमें इक्के-दुक्के को छोड़ दें तो अधिकांश पर्यवेक्षक राहुल के मंसूबों को ध्वस्त करते नजर आ रहे हैं। अन्तर्कलह की आंच पार्टी को अलग झुलसा रही है।
उम्मीदवारों के चयन के लिए कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने एक नई प्रक्रिया अपनायी और इसकी जिम्मेदारी विभिन्न राज्यों से चयनित 10 पर्यवेक्षकों को सौंपी है। लेकिन अधिकांश पर्यवेक्षक या तो तैनाती वाले क्षेत्रों में जा नहीं रहे और अगर जा रहे हैं तो भी उनका काम रस्मअदायगी से ऊपर नहीं उठ पा रहा है। कानपुर में अभी तक कोई पर्यवेक्षक नमूदार नहीं हुआ। कहा जा रहा है कि पर्यवेक्षक की आमद महाधिवेशन के बाद होगी। इटावा के पर्यवेक्षक मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री डा. गोविन्द सिंह ने तीन-चार दौरे जरूर किये, लेकिन उनका समय असंतुष्टों को समझाने-बुझाने में ही बीत गया। फर्रुखाबाद में पर्यवेक्षक ने होटल में बैठकर ही सारी औपचारिकता पूरी कर डाली। वाराणसी अंचल में कोई पर्यवेक्षक ही अब तक नहीं आया।
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य और पूरब की चालीस विधान सभा क्षेत्रों के पर्यवेक्षक सईद मुजफ्फर हुसैन कहते हैं कि दावेदारों के संबंध में पब्लिक से सीधी बात की जानी है। जनता के लिए पार्टीजन के प्रयास का लिटमस टेस्ट शुरू है। अबकी केवल कार्यकर्ताओं से नारेबाजी करवाने वाले टिकट नहीं हासिल कर पाएंगे। वह विधानसभा क्षेत्रों में चौपाल लगाकर संभावित प्रत्याशी की खोज का अभियान चलाकर चर्चा में हैं।
आगरा, मेरठ, अलीगढ़ में कांग्रेस की जनसंदेश यात्रा में कांग्रेस की गुटबाजी साफ नजर आई। मेरठ जिले में कांग्रेस के पर्यवेक्षक पवन घटोवार और एआरओ जेडी सीलम ने अब तक पांच बैठकें की। इन दौरान खेमेबाजी उभर कर सामने आई। असंतुष्टों ने घटोवर और सीलम के पुतले भी फूंके। मुजफ्फर नगर में हरियाणा से सांसद रामप्रकाश को बतौर पर्यवेक्षक भेजा गया। सहारनपुर में रिटायर्ड आईएएस व पूर्व लोकसभा प्रत्याशी देवीदयाल को पर्यवेक्षक नियुक्त जरूर किया गया मगर उनके आगमन पर कांग्रेसी एक-दूसरे से भिड़ गए।
आगरा की जनसंदेश यात्रा में संयोजक के अलावा यात्रा में कोई दिग्गज नेता नहीं पहुंचा। अलीगढ़ में पर्यवेक्षक भारत भूषण ने भी पार्टी की नब्ज गेस्ट हाउस से ही टटोली। जनता के बीच जाना उन्होंने ठीक नहीं समझा। आंवला में स्थानीय नेताओं ने पार्टी के दो वरिष्ठ नेताओं पर खूब भड़ास निकाली। प्रदेश में इस छोर से लेकर उस छोर तक संगठन में खींचतान बनी हुई है।
जहां-जहां पार्टी की जनसंदेश यात्रा निकली वहां-वहां आपसी रार और तकरार देखने को मिली। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्यों के चयन में तो इस कदर भद पिटी कि पूछिये मत। कई बार जारी की गयी सूची में बदलाव का क्रम बना रहा। हास्यास्पद तब हो गया जब प्राय: सभी जिलों में बनाने और हटाने का खेल चलता रहा। निसंदेह वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव के जरिए प्रदेश में ढाई दशक बाद वापस लौटने का सपना देख रही कांग्रेस की राह में कांटे ही कांटे हैं। खोई ताकत पाने के लिए पार्टी के बनाये फार्मूले पर अमल नहीं हो पा रहा है। ऐसे में यह सवाल लाजिमी है कि कांग्रेस अपने युवराज राहुल गांधी के सपनों को कैसे पूरा करेगी।
0 comments :
Post a Comment