सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर सरकार से कहा है कि वह कश्मीर पंडितों को ‘सपने दिखाने वाले प्रस्तावों’ से न लुभाए। कोर्ट ने सवाल किया कि क्या आतंकवाद के डर से घाटी छोड़ने वाले हजारों कश्मीरी पंडितों में से किसी एक को भी सरकारी नौकरी दी गई? कोर्ट ने सरकार से इस बारे में आंकड़े उपलब्ध कराने को कहा है।
अखिल भारतीय कश्मीरी समाज की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि दो दशकों के दौरान कश्मीरी पंडितों की व्यथा पर न तो केंद्र और न ही राज्य सरकार ने कभी ध्यान दिया। चीफ जस्टिस एसएच कपाड़िया, जस्टिस केएस राधाकृष्णन और स्वतंत्र कुमार की बेंच ने सुनवाई करते हुए सोमवार को राज्य सरकार के अधिवक्ता से पूछा कि सरकार ने 15 हजार नौकरियां देने का वादा किया, लेकिन क्या एक भी नौकरी दी गई या एक भी घर मुहैया कराया गया? कोर्ट ने कहा कि हमें सरकार की योजनाओं से लेना-देना नहीं है। उस पर अमल कितना हुआ है, इसका जवाब चाहिए।
कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा ‘ क्या सरकार ने कश्मीरी पंडितों के खाली घरों की नीलामी के एक भी मामले को गैरकानूनी ठहराया है, जो उन्होंने 1990-1997 के दौरान छोड़ दिए थे? राज्य सरकार बताए कि ऐसे कितने घर कश्मीरी पंडितों को वापस लौटाए गए?’ राज्य सरकार के अधिवक्ता ने अगली सुनवाई पर इस मामले में जानकारी उपलब्ध कराने को कहा। कोर्ट ने मामले की सुनवाई चार महीने के लिए टाल दी है।
कश्मीर हमारा है और वहा पर शुद्धिकरण अभियान चला कर और दुष्टों को दमन कर घाटी को फिर से इस धरती का स्वर्ग बना देना चाहिए
ReplyDeleteउच्च न्यायलय की बात तो केंद्र सर्कार तो मानती ही नहीं वह तो आतंक बादियो की ही सुनती है कश्मीरियों को भी अलग रास्ता चुनना होगा सरे भारत को उनके साथ खड़ा होना होगा.
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