संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने थाईलैंड और कंबोडिया से अपील की है कि वे दोनों अपने सीमा क्षेत्र में स्थित प्राचीन शिव मंदिर के मुद्दे को लेकर सैन्य संघर्ष की स्थिति से बचें तथा बातचीत से मसले का हल निकालें।
खमेर शैली में बने इस मंदिर को हिंदू सभ्यता को प्रतीक बताया गया है। थाईलैंड और कंबोडिया के विवाद के बाद थाइलैंड के सैनिकों के मंदिर को क्षतिग्रस्त करने की खबर के बाद दुनिया भर में इस मंदिर को बचाने की आवाज उठ रही है।
मसले को हल करने में मदद करे:
सुरक्षा परिषद ने इस प्राचीन शिव मंदिर को लेकर हुए सैन्य संघर्ष पर चिंता व्यक्त करते हुए क्षेत्रीय देशों के संगठन आसियान से आग्रह किया कि वह इस मसले को हल करने के लिए मदद करें। इस महीने के शुरू में हुए संघर्ष में आठ लोग मारे गए थे तथा मंदिर का कुछ हिस्सा क्षतिग्रस्त हुआ था। कंबोडिया के प्रधानमंत्री हुन सेन इस मुद्दे को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में गए थे।
क्या है मामला:
हिंदू शासक सूर्यवर्मन ने 11 वीं शताब्दी में इस मंदिर का निर्माण करवाया था, जिस पर थाईलैंड और कंबोडिया दोनों स्वामित्व का दावा करते हैं। हालांकि अंतरराष्ट्रीय न्यायलय ने 1962 में इस पर कंबोडिया के दावे को सही ठहराते हुए मंदिर उसे सुपुर्द करने का फैसला सुनया था। लेकिन मंदिर के इर्द गिर्द 4.6 वर्ग किलोमीटर के इलाके पर अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। जिस वजह से दोनों देशों के बीच विवाद बरकरार है।
किस-किस तरह का विवाद:
भगवान शिव का यह ऐतिहासिक मंदिर लंबे समय से कंबोडिया और थाइलैंड के बीच टकराव का कारण बना हुआ है। इस मंदिर के कारण 1958 में दोनों देशों के बीच राजनीतिक संबंध टूट गए। 1962 में अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने इसके लेकर एक समझौता हुआ जिसमें कंबोडिया को जीत मिली पर आज भी इस मसले को लेकर टकराव है।
सत्तर के दशक में प्रियाह विहेयार की पहाड़ी अमेरिका समर्थक लोन नोल आर्मी ओर खमेर रूज के बीच टकराव का केंद्र बनी और 1998 में इस इलाके को प्रयोग बचे खुचे खमेर रूज सैनिकों ने आत्मसमर्पण के लिए किया। इस मंदिर में नजर आने वाले छेद से गृह युद्घ से इसे हुए नुकसान के सबूत है। कंबोडिया के दो गृहयुद्घों से भी इस मंदिर का खास नाता है।
12वीं और 13वीं सदी में खमेर रूज शासकों ने थाइलैंड के बड़े हिस्से पर कब्जा जमा लिया था। इस साम्राज्य में थाइलैंड को लोपारी और आधुनिक बैंकाक तक के इलाके को मिला लिया गया। 15वीं सदी में अयुथाया राजवंश के उदय के साथ ही थाइलैंड भी क्षेत्रीय ताकत बन गया। इसके बाद थाईलैंड ने पतनोन्मुख खमेर रूज साम्राज्य पर हमला कर दिया।
1904 में थाईलैंड-कंबोडिया सीमा का निर्धारण फ्रांस सरकार की पहल पर किया गया। इसमें मंदिर के कंबोडिया की भौगोलिक सीमा में होने की पुष्टि की गई। थाइलैंड इससे नाराज हुआ लेकिन उसने कभी इस पर औपचारिक रूप से नाराजगी नहीं जताई। इसके बावजूद इसे लेकर दोनों के बीच टकराव बरकरार है।
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