लोकपाल बिल को पटरी से उतारने की कोशिश की तोहमत जड़ते हुए संप्रग नेतृत्व को कठघरे में खड़ा करने को लेकर कांग्रेस ने समाजसेवी अन्ना हजारे पर जवाबी आक्रामक वार किया है।
सोनिया गांधी को लिखे गए खत से बौखलाई कांग्रेस ने साफ कहा है कि अन्ना और उनकी टीम राजनीतिक नेताओं की जुबान पर जिस तरह की तालाबंदी चाहती है वह तो लोकतंत्र को मौत की राह पर ले जाएगा।
सोनिया गांधी को लिखे गए खत से बौखलाई कांग्रेस ने साफ कहा है कि अन्ना और उनकी टीम राजनीतिक नेताओं की जुबान पर जिस तरह की तालाबंदी चाहती है वह तो लोकतंत्र को मौत की राह पर ले जाएगा।
इस बयान के जरिए वस्तुतः कांग्रेस ने पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह और संचार मंत्री कपिल सिब्बल की शिकायत वाले सोनिया गांधी को लिखे पत्र में उठाए गए सवालों को दरकिनार कर दिया है। इतना ही नहीं परोक्ष रूप से कांग्रेस ने यह संदेश भी अन्ना और उनकी टीम को दे दिया है कि पार्टी दिग्विजय के बयानों से पूरी तरह इत्तफाक रखती है। कांग्रेस प्रवक्ता मनीष तिवारी ने दिग्विजय की अन्ना के अनशन से लेकर लोकपाल बिल मसौदा समिति के सिविल सोसाइटी के सदस्यों पर उठाए सवालों को दुष्प्रचार अभियान मानने से इनकार करते हुए कहा कि निजी विचार जाहिर करना कोई अपराध नहीं है।
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि भ्रष्टाचार पर जब बहस छिड़ी है तो कई तरह के सवाल उठेंगे ही, ऐसे में भारत सरीखे मुखर लोकतंत्र में विचारों की अभिव्यक्ति को कैसे रोका जा सकता है। मनीष ने कहा कि बहस में दूसरे पक्ष के विचारों पर तालाबंदी की शर्त रखना तो लोकतंत्र को मौत की ओर ले जाने सरीखा होगा। वहीं संप्रग सरकार के सियासी गलियारे में भी अन्ना के बयान को लेकर असहजता की स्थिति है।
सरकार से जुड़े शीर्ष सूत्रों का साफ कहना है कि जब भ्रष्टाचार पर अन्ना की इंडिया अगेंस्ट करप्शन ने उच्च नैतिक मानदंड की लक्ष्मण रेखा देश के सामने तय कर दी है तो उनके सदस्यों को भी इसकी कसौटी पर कसने के लिए तैयार होना चाहिए। दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल के कार्यालय ने भी बयान जारी कर पलटवार करते हुए अन्ना के पत्र पर ही सवाल उठाए। सिब्बल ने कहा कि मसौदा समिति की बातें लीक कराने का उनके आरोप तथ्यों से परे है।
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