'कांग्रेस घास' देश के एक लाख 60 हजार 516 करोड़ रुपए अब तक चट कर चुकी है। अब कृषि वैज्ञानिक इसके खिलाफ नए सिरे से कमर कस रहे हैं।
गाजर घास के 'कांग्रेस घास' नाम से भी जाना जाता है। इसका वैज्ञानिक नाम 'पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस' है। यह एक खरपतवार है। यह 1950 के दशक में अमेरिका से मिले पीएल-480 किस्म के गेहूं के साथ भारत आई थी। यह फसलों और पर्यावरण को तो नुकसान पहुंचाती ही है, इंसानी सेहत के लिए भी खतरनाक है।
इसके एक पौधे में 25-30 हजार बीज पैदा होते हैं और हवा के साथ उड़कर ये दूर-दूर तक पहुंच जाते हैं। त्वचा से इन बीजों का संपर्क होने पर ऐसी एलर्जी हो जाती है, जिसका इलाज वैज्ञानिक अब तक नहीं ढूंढ पाए हैं। इसके कारण स्किन काली पड़ जाती है और उस पर फुंसियां निकल आती हैं। इसके बीजों के संपर्क में आने पर अस्थमा भी हो सकता है। दिल्ली जैसे महानगरों में भी इस घास की चपेट में आने वाले लोगों की तादाद लगातार बढ़ रही है। जानवरों के लिए भी यह घास खतरनाक है। इसका प्रसार अनाज उत्पादन में कमी के लिए भी जिम्मेदार है।
'कांग्रेस घास' पिछले 55 सालों में देश की करीब 350 लाख हेक्टेयर जमीन पर पैर फैला चुकी है। इसमें से लगभग 20 लाख हेक्टेयर जमीन खेती की है। करगिल से लेकर अंडमान निकोबार और दिल्ली तक इसने पैर पसार लिए हैं।
जबलपुर स्थित डायरेक्टरेट ऑफ वीड साइंस रिसर्च के निदेशक डॉ. जे. जी. वार्ष्णेय बताते हैं कि पूरे देश से इसका नामोनिशान मिटाने के लिए मेक्सिको से जायगोग्रैम्मा बाइकोलोराटा नाम के एक कीट के आयात का फैसला किया गया है। यह 'कांग्रेस घास' को चट कर जाता है। इसके ट्रायल के नतीजे खासे अच्छे रहे हैं। केमिकल्स की मदद से भी इसे खत्म करने की कोशिशें की जा रही हैं। लोगों को इस घास और इसके दुष्प्रभावों के बारे में भी बताया जा रहा है।
उनका कहना है कि जायगोग्रैम्मा बाइकोलोराटा को देश के हर इलाके में भेजा जाएगा। दूरदराज के इलाकों में इसे डाक से भेजने के लिए पैकेजिंग की सुरक्षित तकनीक का विकास कर लिया गया है। ऐसी तकनीक का विकास भी कर लिया गया है , जिससे इस कीट की पूरे साल ब्रीडिंग होती रहे। जाड़ों और गर्मियों में आमतौर पर इसकी ब्रीडिंग नहीं होती। यह फसलों और अन्य वनस्पतियों को नुकसान नहीं पहुंचाता।
0 comments :
Post a Comment