इंदौर जिले के गवर्नमेंट वेटरनेरी डॉक्टर महाविद्यालय से पीजी स्तर पर अनुसंधान कर रहे जुल्फकार-उल-हक ने गाय और भैस की जुगाली के दौरान निकलने वाली मीथेन गैस को इकट्ठा करके इसे तरल ईंधन में बदलने की परियोजना का खाका तैयार किया है।
उन्होंने बताया है कि जिस डेयरी फार्म की परिकल्पना को आकार देने की कोशिश में जुटा हूं, उसमें मवेशियों को आहार दिए जाने के बाद उनके मुंह पर विशेष नलियां लगा दी जाएंगी। हक ने बताया कि ये नलियां पशुओं की जुगाली और डकार के दौरान निकलने वाली मीथेन गैस को जमा करेगी, जिसे एक चैम्बर में पहुंचाकर तरल ईंधन में बदल दिया जाएगा।
उन्होंने बताया है कि जिस डेयरी फार्म की परिकल्पना को आकार देने की कोशिश में जुटा हूं, उसमें मवेशियों को आहार दिए जाने के बाद उनके मुंह पर विशेष नलियां लगा दी जाएंगी। हक ने बताया कि ये नलियां पशुओं की जुगाली और डकार के दौरान निकलने वाली मीथेन गैस को जमा करेगी, जिसे एक चैम्बर में पहुंचाकर तरल ईंधन में बदल दिया जाएगा।
मीथेन उन ग्रीनहाउस गैसों में शामिल है, जिनकी ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ाने में अहम भूमिका मानी जाती है। हक ने कहा, मीथेन को ईंधन के रूप में वाहनों और खाना पकाने में इस्तेमाल किया जा सकता है। चूंकि, देश में मवेशियों की आबादी दुनिया के दूसरे मुल्कों के मुकाबले बेहद ज्यादा है।
लिहाजा, इस तरह की परियोजना से ग्लोबल वॉर्मिंग पर नियंत्रण में भी मदद मिलेगी। हक ने बताया कि एक अनुमान है कि जुगाली करने वाला मवेशी आमतौर पर दिन भर में 250 से 500 लीटर मीथेन वातावरण में छोड़ सकता है। लिहाजा इस बारे में अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय खासा चिंतित है।
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