ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन की कोरेगांव पार्क इलाके की करीब एक हजार करोड़ की 35 एकड़ जमीन पर नेताओं की नजर है। इसे लेकर ओशो के भक्तों में ही विवाद खड़ा हो गया है।
दो भक्तों ने मुंबई के चैरिटी कमिश्नर से अनुरोध किया है कि पुणे की संपत्ति को बेचने के आवेदन को ठुकरा दिया जाए। योगेश ठक्कर (उर्फ स्वामी प्रेम गीत) और किशोर रावल (उर्फ स्वामी प्रेम आनंद) ने बुधवार को चैरिटी कमिश्नर के सामने याचिका दाखिल की है।
इसमें बॉम्बे पब्लिक ट्रस्ट्स (बीपीटी) एक्ट 1950 की धारा 36 के तहत किए गए आवेदन का विरोध किया है। बीपीटी एक्ट की धारा 36 कहती है कि किसी भी सार्वजनिक ट्रस्ट की अचल संपत्ति को बेचने या गिरवी रखने से पहले चैरिटी कमिश्नर की अनुमति जरूरी है।
याचिका में कहा गया है कि ओशो के विचारों को विस्तार देने के लिए भक्तों ने कड़े परिश्रम, समय, पैसे और समर्पण के साथ यह संपत्ति खड़ी की है। फाउंडेशन की गतिविधियों और ट्रस्टियों को मुख्य रूप से तीन व्यक्ति प्रभावित कर रहे हैं।
इनकी पहचान माइकल ओ‘बायर्न (उर्फ स्वामी जयेश),जॉर्ज मेरेडिथ (उर्फ स्वामी अमृतो) और डार्सी ओ‘बायर्न (उर्फ स्वामी योगेंद्र)के रूप में की गई हैं। ये लोग मुंबई और पुणे के नेताओं को ट्रस्ट की संपत्ति बेचने की कोशिश में है।
ये भक्तों के उस धड़े से जुड़े हैं,जिसने 19 जनवरी 1990 को ओशो के निधन के बाद ट्रस्टों पर नियंत्रण हासिल किया था। फाउंडेशन की गतिविधियों को कंपनी में तब्दील करने की कोशिशें हो रही हैं। ओशो मल्टीमीडिया एंड रिसोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड बनाई गई है, जिसमें ट्रस्टी डायरेक्टर हैं।
कई प्रयासों के बावजूद ओशो इंटरनेशनल रिसोर्ट की प्रवक्ता मां अमृत साधना से संपर्क नहीं हो सका। ओशो के वरिष्ठ भक्तों में शामिल साधना उस धड़े में शामिल हैं, जो पुणे की संपत्ति का प्रबंधन करता है। उन्हें प्रेस से बातचीत करने की जिम्मेदारी दी गई है।
ओशो के निधन के करीब एक दशक बाद 2001 में ओशो कम्यून की संपत्ति का सौदा हुआ था। जेन प्रापर्टीज लिमिटेड के जरिए ओशो कम्यून ने गोदरेज प्रापर्टीज एंड इन्वेस्टमेंट लिमिटेड के साथ संयुक्त उपक्रम शुरू किया। इसी जमीन पर गोदरेज मिलेनियम कॉम्प्लेक्स खड़ा किया गया।
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