कांग्रेस ने अपनी तथाकथित जीत का तोहफा दिया:पेट्रोल पांच रूपये महंगा

कांग्रेस ने अपनी तथाकथित जीत का तोहफा पेट्रोल की कीमते बढाकर दिया है। तेल कंपनियों ने इस बार पेट्रोल के दाम एक ही झटके में 5 रुपये बढ़ा दिए हैं। नई कीमतें शनिवार मध्यरात्रि से लागू हो जाएंगी। पिछले 9 महीने में नौवीं बार तेल के दाम बढ़ाए गए हैं। इस बार यह बढ़ोतरी सबसे अधिक है। दिल्ली में पेट्रोल अब 63.37 रुपये लीटर मिलेगा।

डीजल और घरेलू रसाई गैस के सिलेंडर की कीमतों में भी जल्द बढो़तरी की जा सकती है। डीजल में प्रति लीटर 4 रुपये और एलपीजी सिलेंडर की दरों में 20 से 25 रुपये की वृद्धि की संभावना जताई जा रही है।

ताजा बढ़ोतरी के बाद दिल्ली में इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन के पेट्रोल पंप पर पेट्रोल 63.37 रुपये लीटर बिकेगा। इससे पहले यह 58.37 रुपये लीटर था।

सूत्रों के अनुसार पेट्रोल में पांच रुपये लीटर की वृद्धि के बावजूद तेल कंपनियों को अभी भी पेट्रोल पर 5.50 रुपये प्रति लीटर का नुकसान हो रहा है, इस लिहाज से जल्द ही पेट्रोल के दाम और बढ़ सकते हैं।

पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री करने वाली अन्य कंपनी हिन्दुस्तान पेट्रोलियम और भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन ने भी पेट्रोल के दाम 4.99 रुपये और 5.01 रुपये लीटर बढ़ा दिए हैं।

इंटरनैशनल मार्केट में कच्चे तेल के दाम पिछले ढाई साल के उच्चस्तर पर पहुंच जाने के बावजूद तेल कंपनियों ने इस साल जनवरी से पेट्रोल के दाम नहीं बढ़ाए। पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के चलते तेल कंपनियों ने मूल्य वृद्धि को रोका हुआ था और अब विधानसभा चुनाव संपन्न होते ही पेट्रोल के दाम बढ़ा दिए गए।

सरकार ने पिछले साल जून में पेट्रोल के दाम से अपना नियंत्रण हटा लिया था। तेल कंपनियों ने सरकार की तरफ से इशारा मिलते ही अपने स्तर पर पेट्रोल के दाम बढ़ा दिए।

इस बढ़ोतरी के बाद मुंबई में पेट्रोल 5.25 रुपये, कोलकाता में 5.21 रुपये, चेन्नै में 5.29 रुपये महंगा हो गया है। दिल्ली में पेट्रोल अब 63.37 रुपये प्रति लीटर मिलेगा।

कश्मीर पंचायत चुनाव : एक कश्मीरी पंडित महिला ने एक मुस्लिम को हराया

आशा जी पहली कश्मीरी पंडित महिला हैं जो मुस्लिम बहुल और उग्रवाद प्रभावित कश्मीर घाटी में पंच चुनी गई हैं। उन्होंने मुस्लिम महिला प्रतिद्वंद्वी सर्वा बेगम को हराकर यह चुनाव जीता।

गौरतलब है कि कश्मीर में अल्पसंख्यक माने जाने वाले पंडित समुदाय के लोग 1989-90 में उभरी भारत विरोधी हिंसा के दौरान भारी संख्या में कश्मीर छोड़ने को मजबूर हो गए थे। लेकिन आशा का परिवार गांव के उन चार परिवारों में है जो अपनी पुरखों की जमीन छोड़ने को तैयार नहीं हुए।

श्रीनगर-गुलमर्ग रोड पर स्थित कुंजेर ब्लॉक के वुसन गांव में आशा जी का मुकाबला सरवा बेगम से था। इस सीधे मुकाबले में आशा जी को 55 वोट मिले जबकि सरवा बेगम को 42 वोट।

वुसन गांव में अपने पति राधाकृष्ण और दो बच्चों के साथ रह रहीं आशा बताती हैं कि ' मेरी इस जीत से देश के अलग-अलग हिस्सों में विस्थापित जीवन बिता रहे कश्मीरी पंडितों को यह संदेश जाएगा कि कश्मीर में अब पंडितों को कोई खतरा नहीं है। वे यहां अच्छी तरह रह सकते हैं। ' उन्होंने कहा कि ' गांव के मुस्लिम निवासियों ने मुझे वोट दिया है और मैं उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की पूरी कोशिश करूंगी बशर्ते कि सरकार संविधान के 74वें संशोधन के मुताबिक अधिकार पंचायतों को सौंपे। '

आशा का बड़ा सुरेश कुमार बेटा जम्मू कश्मीर पुलिस में कॉन्स्टेबल है जबकि छोटा बेटा गांव में पिता राधाकृष्ण की दुकान पर उनकी मदद करता है। आशा जी बताती हैं कि उन्हें चुनाव लड़ने के लिए गांव के नंबरदार अब्दुल हामिद वनी ने प्रोत्साहित किया, ' मुझे वनी साहब ने ही कहा कि मैं चुनाव लड़ूं।

उन्होंने
मेरा उत्साह बढ़ाया और कहा कि पंचायत चुनाव जीत कर मुझे अपने ब्लॉक का विकास करना चाहिए। ' आशा जी का मायका जम्मू के डोडा जिले में है और वह गर्व से बताती हैं कि वह गुलाम नबी आजाद (केंद्रीय मंत्री) के गांव की हैं।

खास बात यह कि वुसन गांव में सुरक्षा बलों का कोई कैंप तो नहीं ही है, कोई पुलिस पोस्ट भी नहीं है। हालांकि अलगाववादियों ने चुनाव के बहिष्कार का आह्वान किया था और आतंकवादियों ने चुनाव में बाधा पहुंचाने की भी कोशिश की।

गौरतलब है कि जम्मू कश्मीर में पंचायत चुनाव एक दशक बाद हुए हैं। पिछले पंचायत चुनाव 2001 में हुए थे।

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