भारतीय जनता पार्टी ने सांप्रदायिक और लक्षित हिंसा के खिलाफ लाए जाने वाले बिल की कड़ी आलोचना की है. बीजेपी का कहना है कि यह बिल राज्यों के संघीय अधिकारों के खिलाफ है जिसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं.
बीजेपी के मुताबिक सांप्रदायिक हिंसा और लक्षित हिंसा के लिए इस बिल में बहुसंख्यक समुदाय को ही जिम्मेदार माना गया है. राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने अंदेशा जताया कि इस बिल को सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया है. "ऐसा लगता है कि इस बिल का मसौदा उन लोगों ने तैयार किया है जिन्होंने गुजरात दंगों से सीखा है कि कैसे वरिष्ठ नेताओं को जिम्मेदार ठहराया जाए, भले ही दंगों के लिए वे जिम्मेदार न हों.
ड्राफ्ट बिल मान कर चलता है कि सांप्रदायिक हिंसा के लिए हमेशा बहुसंख्यक समुदाय जिम्मेदार होता है और अल्पसंख्यक समुदाय इसकी शुरुआत नहीं करता."जेटली ने कांग्रेस पर आरोप लगाते हुए कहा कि इस बिल में बहुसंख्यकों के खिलाफ अल्पसंख्यक समुदाय के अपराधों को अपराध नहीं माना गया है.
किसी के साथ यौन दुर्व्यवहार का मामला इस बिल के मुताबिक तभी दंडनीय होगा, अगर वह किसी अल्पसंख्यक के खिलाफ किया गया हो. वह कहते हैं, "संगठित और लक्षित हिंसा, नफरत और दुष्प्रचार, अपराध करने वाले जेटली ने उठाए सवालव्यक्ति की वित्तीय मदद तभी अपराध माने जाएंगे अगर उन्हें किसी अल्पसंख्यक समुदाय के व्यक्ति के खिलाफ किया गया हो.
बहुसंख्यक समुदाय का व्यक्ति खुद को पीड़ित नहीं बता सकता."जेटली ने जोर देकर कहा कि सांप्रदायिक हिंसा कानून और व्यवस्था की दिक्कत है और इसमें कार्रवाई का दायरा राज्य सरकार ही तय करती है. वह मानते हैं, "केंद्र और राज्य में ताकत के विभाजन के बाद केंद्र सरकार के पास राज्य में कानून व्यवस्था में सीधे दखल देने का अधिकार नहीं है."
जेटली ने आशंका जताई कि अगर इस तरह का कानून लागू होता है तो केंद्र राज्य सरकार का अधिकार छीन लेगा.सांप्रदायिक सदभाव और न्याय के लिए गठित होने वाली सात सदस्यीय समिति पर भी जेटली ने सवाल उठाए. "इन सात सदस्यों में से चार सदस्य अल्पसंख्यक समुदाय से होंगे. इनमें चेयरमैन और वाइस चेयरमैन शामिल हैं. ऐसी ही संस्था राज्य में बनाए जाने का प्रस्ताव है. इस तरह संस्था की सदस्यता धार्मिक और जातीय आधार पर तय होगी."
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