श्रीमद् भगवद् गीता के अनुवादित संस्करण पर प्रतिबंध लगाने के लिए दायर याचिका को रूस की अदालत ने खारिज कर दिया। रूस के साइबेरिया की टोमस्क स्थित अदालत ने बुधवार को इस मामले पर फैसला सुनाया। अदालत ने प्रतिबंध लगाने की माँग को पूरी तरह "स्वयंसिद्ध अतार्किक" बताया। इस फैसले के बाद पूरे विश्व के हिन्दू अनुयायियों में खुशी का माहौल है। मास्को में स्थित इस्कॉन मंदिर (इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ कृष्ण कॉन्शसनेस) की साधु प्रिया दास ने कहा कि हम जीत गए। न्यायाधीश ने भगवद् गीता पर प्रतिबंध लगाने संबंधी याचिका को खारिज कर दिया। सुश्री दास हाल में रूस में बनी नई हिन्दू परिषद की अध्यक्ष भी हैं। विदेश मंत्री एसएम कृष्णा ने इस फैसले का स्वागत किया है और रूस सरकार द्वारा इस मामले पर किए सहयोग के लिए धन्यवाद दिया। साइबेरिया क्षेत्र के टोमस्क अदालत में अभियोजकों ने तर्क दिया था कि श्रीमद् भगवद् गीता के अंग्रेजी अनुवाद "भगवद् गीता एज इट इज" का रूसी संस्करण सामाजिक वैमनस्यता फैलाता है और यह पुस्तक दूसरे धर्म के लोगों के प्रति घृणा का संदेश देती है। इसलिए इसे संघीय रूसी सरकार द्वारा चरमपंथी साहित्य में शामिल किया जाए। उल्लेखनीय है कि इसमें हिटलर की आत्मकथा "मीन केम्फ" और यहूदियों का मुस्लिम और ईसाई विरोधी साहित्य भी शामिल है। इस्कॉन को सामान्य तौर पर "हरे कृष्ण आंदोलन" के रूप में जाना जाता है। इसके संस्थापक अभय चरणारविंद (एसी) भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने श्रीमद् भगवद् गीता का अंग्रेजी अनुवाद किया है और इसकी टीका भी लिखी है। इसी के रूसी संस्करण को लेकर यह मामला दायर किया गया था।
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