रोजमर्रा और जीवनरक्षक दवाइयों के दामों में भारी गिरावट के संकेत मिले है.इतना ही नहीं कुछ दवाइयों के दामों का निर्धारण खुले बाजार के हवाले करने का प्रस्ताव है. इससे महंगी दवाइयों के दामों में कम से कम 5 फीसद गिरावट आएगी. दवा मूल्यों के निर्धारण पर दवा उत्पादकों के एकाधिकार को समाप्त करने के लिए सरकार ने केंद्रीय मंत्रियों का एक समूह गठित किया था. इसकी बैठक बृहस्पतिवार को है.
कृषि मंत्री शरद पवार की अध्यक्षता में गठित इस समूह की बैठक पर पूरे दवा उद्योग जगत की नजर है. दवाइयों के मूल्य नियंतण्रएवं सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने के सरकारी एजेंडे को ध्यान में रखते हुए तमाम विशेषज्ञों की राय मांगी गई थी.
इसमें कई क्षेत्रों के वैज्ञानिक व अनुसंधानकर्ता भी शामिल थे जिन्होंने अंग्रेजी दवाइयों के बुनियादी तत्वों व रसायनों का जिक्र करते हुए कहा था कि जो तत्व दवाइयों में मिलाए जाते है उनका मूल्य इतना ज्यादा नहीं होता है जितना पैसा मरीजों से वसूला जाता है. दवा उद्योग जगत पर स्वास्थ्य मंत्रालय का कोई अंकुश नहीं है जबकि दवाइयों की खरीद-फरोख्त में सबसे बड़ा माध्यम अस्पताल और डाक्टर हैं. दवा उद्योग जगत पर रसायन और उर्वरक मंत्रालय का नियंतण्रहै.
यह पहला मौका है जब दवाइयों के मूल्य निर्धारण को लेकर स्वास्थ्य मंत्रालय को तवज्जो दी गई है और उसी की सिफारिशों के आधार पर मंत्रियों के समूह की बैठक का एजेंडा तैयार किया गया है. वैसे तो जीवनरक्षक एवं रोजमर्रा की सूची में 15 सौ से अधिक दवाइयों के नाम हैं मगर इनमें सर्वाधिक मांग एवं खपत वाली 348 ऐसी दवाइयों की पहचान की गई है जिनके मूल्यों को नियंत्रिश्वत करने का प्रस्ताव है.
ऐसा करने से इन दवाइयों के दामों में 50 फीसद से ज्यादा की गिरावट आ जाएगी. यह भी पता चला है कि तंबाकू लॉबी की ही तरह अंग्रेजी दवा उद्योग जगत भी सरकार पर दबाव बनाने में लगा हुआ है.
यह लॉबी चाहती है कि दवाइयों के मूल्य निर्धारण पर उसके एकाधिकार को न समाप्त किया जाए. मगर सरकार का मानना है कि जब ‘जन स्वास्थ्य औषधि योजना’ के तहत सरकारी क्षेत्र की दवा उत्पादक कंपनियां सस्ते मूल्य की दवाइयों का उत्पादन कर सकती हैं तो फिर निजी क्षेत्र की कंपनियों को परहेज क्यों है.
इस योजना के तहत जो दवाइयां बहुत कम मूल्य पर मिल जाती है वही दवाइयां ब्रांडेड कंपनियों में बहुत ही महंगी हैं. मंत्री समूह को यह जानकारी भी दी गई है कि हाल के वर्षो में योग एवं आयुव्रेद के क्षेत्र में आई क्रांति के चलते देशी दवाइयों की मांग बढ़ गई है और वे सस्ती भी हैं.
इसी तरह होम्योपैथी के विशेषज्ञों ने एक रिपोर्ट दी है जिसमें कहा गया था कि जिन रोगों के निवारण की दोनों पद्धतियों में दवाइयां है उनमें एलोपैथी के मुकाबले होम्योपैथी दवाइयां काफी सस्ती और सटीक हैं.
इन विशेषज्ञों ने होम्योपैथी और ऐलोपैथी दवाइयों के मूल्यों की तुलनात्मक रिपोर्ट भी दी है.
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