लिब्रहान आयोग की रपट को सीबीआई ने एक बार फिर से खारिज कर दिया है। सीबीआइ ने स्पष्ट कर दिया है कि अयोध्या के विवादित ढांचे को गिराने के लिए किसी साजिश के तहत धन जुटाए जाने की आयोग की आशंका निराधार है। सीबीआइ ने पिछले साल ही आयोग की रपट के आधार पर पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी समेत कुछ अन्य भाजपा व संघ नेताओं की भूमिका की नए सिरे से जांच से इंकार कर दिया था, पर गृह मंत्री पी. चिदंबरम चाहते थे कि नए सिरे से जांच होनी चाहिए।
सीबीआइ के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि गृह मंत्रालय के अनुरोध पर ढांचा ध्वंस के लिए जुटाए गए धन के स्रोतों की विस्तृत जांच की गई, लेकिन ऐसा कोई सुबूत नहीं मिला, जिससे पता चले कि साजिश के तहत बड़ी मात्रा में धन जुटाया गया था। उनके अनुसार, 6 दिसंबर, 1992 को कारसेवा के आयोजन से जुड़ी संस्थाओं एवं ट्रस्टों के सभी खातों की जांच कर ली गई है। कार सेवा के दौरान ट्रस्टों व संस्थाओं के खातों में महज कुछ लाख रुपये ही जमा थे, वो भी लंबे समय में धीरे-धीरे जमा हुए थे। उक्त तिथि को ही विवादित ढांचा गिराया गया था।
विवादित ढांचा गिराए जाने के सभी पहलुओं की जांच कर साजिश में शामिल भाजपा एवं विहिप नेताओं के खिलाफ 1993 में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है और अदालती कार्रवाई भी चल रही है। लिब्रहान आयोग ने इनके साथ-साथ पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और अन्य कई भाजपा एवं संघ नेताओं की भूमिका की जांच करने की सिफारिश कर दी थी। अधिकारियों का मानना है कि ऐसा सिर्फ रिपोर्ट को सनसनीखेज बनाने के लिए किया गया है।
लिब्रहान आयोग :
गठन : विवादित ढांचा गिराए जाने के दस दिनों के भीतर 16 दिसंबर, 1992 में लिब्रहान आयोग का गठन किया गया।
सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एम एस लिब्रहान के नेतृत्व में एक सदस्यीय आयोग को 3 माह के भीतर यानि 16 मार्च, 1993 को रिपोर्ट सौंपनी थी। आयोग तय समय सीमा में रिपोर्ट नहीं दे सका। लिहाजा, आयोग को बार-बार विस्तार दिया गया, अंतिम रूप से 30 जून, 2009 को न्यायाधीश लिब्रहान ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को रिपोर्ट सौंपी
वर्ष : 16 साल 7 माह [16 दिसंबर 1992-30 जून 2009]
विस्तार : 48 बार
बैठकें : 399
खर्च : करीब नौ करोड़
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