भारतीय मुद्रा के लिए एक आधिकारिक प्रतीक-चिह्न दिनांक १५ जुलाई, २०१० को चुन लिया गया था जिसे आईआईटी, गुवाहाटी के प्रोफेसर डी. उदय कुमार ने डिज़ाइन किया है। इसके लिए एक राष्ट्रीय प्रतियोगिता आयोजित की गई थी।
इसके अन्तर्गत सरकार को तीन हज़ार से अधिक आवेदन प्राप्त हुए थे।रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर की अध्यक्षता में गठित एक उच्चस्तरीय समिति ने भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषाओं के साथ ही आधुनिक युग के बेहतर सामंजस्य वाले इस प्रतीक को अंतिम तौर पर चयन करने की सिफारिश की थी। इसे यूनीकोड मानक में शामिल करने हेतु आवेदन कर दिया गया है।
इस चिह्न को यूनीकोड में U+20A8 पर स्थान मिलेगा, जो पहले ही रुपये के Rs जैसे दिखने वाले चिह्न के लिए आवंटित है। फिलहाल इस चिह्न को कम्प्यूटर पर मुद्रित करने के लिये कुछ नॉन-यूनिकोड फॉण्ट बनाये गये हैं।
उपरोक्त बाते इस विषय का एक पहलु प्रस्तुत करतीं हैं और इसका एक और पहलु भी है जिससे शायद आपलोग परिचित नहीं होंगे -
‘भारतीय रूपये के प्रतीक चिन्ह’ सहित कई अन्य राष्ट्रीय महत्त्व के Logo की चयन प्रक्रिया को दिल्ली उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी है |
दिल्ली उच्च न्यायालय ने आरटीआई कार्यकर्त्ता राकेश कुमार सिंह के द्वारा दायर याचिका को स्वीकार करते हुए गृह मंत्रालय से अपना पक्ष देने को कहा है | याचिका में राजभाषा अधिनियम १९६३ के प्रावधानों के अनुसार काम न करके ‘रूपये’ और अन्य प्रतीक चिन्हों को पक्षपातपूर्ण ढंग से मान्यता देने में हुए भ्रष्टाचार की बात कही गयी है ,जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया है |
इसके आलावा न्यायलय ने बगैर किसी समुचित दिशा –निर्देश के राष्ट्रीय महत्त्व के प्रतीकों के चयन पर भी सवाल खड़े किये हैं |
गौरतलब है कि ‘रूपये के प्रतीक चिन्ह’ के चयन में हुये भ्रष्टाचार का खुलासा राकेश कुमार सिंह की आरटीआई से हुआ था | आरटीआई में प्राप्त तथ्यों के आलोक में अधिक्वाकता कमल कुमार पाण्डेय पिछले साल से ही न्यायलय की शरण में हैं | अगस्त 2011 में दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले में PIL दाखिल करने की अनुमति दे दी थी |
सम्बंधित आरटीआई के तहत रूपये एवं अन्य प्रतीक चिन्हों के चयन में धांधली के कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं जो नीचे बिन्दुवार प्रस्तुत है :
1 ) डी.एम.के पार्टी के नेता के बेटे को पात्रता न होने के बावजूद विजेता घोषित कर दिया गया |[सबूत]
2 ) फ़ाइनल में जगह पाने वेले प्रतिभागियों में से एक नंदिता कोरिया के पिता चार्ल्स कोरिया ने प्रधानमंत्री एवं रिजर्व बैंक आफ इंडिया में पहले से ही सिफारिशी पत्र भेजा था |
3) डिजाइन कंसेप्ट को भारतीय रुपया प्रतीक चिन्ह के साथ जूरी के सामने नहीं रखा गया | RTI – Q. 7
4) शीर्ष पांच शोर्ट लिस्टेड प्रक्रिया में प्रतिभागियों जिनकी संख्या 2644 थी , को कोई अंक या ग्रेड नहीं दिए गए थे |.RTI – Q. 16 D
5) जूरी ने प्रत्येक डिजाइन को महज 20 सेकेण्ड में ही निपटा दिया | Hindustan Times report
6 ) 29 एवं 30 सितम्बर 2009 को हुई मीटिंग के दौरान तीन जूरी मेम्बर अनुपस्थित थे | RTI Q. 3
7 ) चयन प्रक्रिया के दौरान एक साथ सातों जूरी मेम्बरो ने कभी भाग नहीं लिया और न ही एक साथ कभी मिले |RTI Q. 4
8 ) जूरी के एक सदस्य जो कि संस्कृति मंत्रालय से थे , फ़ाइनल के दिन भी अनुपस्थित थे |
9) वित्त मंत्रालय के पास कोई भी रिकार्ड मौजूद नहीं है जो कि कुल प्रविष्टियों को दर्शाता है | RTI Q. 5
1० ) विज्ञापन सिर्फ अंगरेजी भाषा में ही छपवाए गए थे | RTI Q. 7
11 ) रूपये का प्रतीक संविधान के 351 वे अनुच्छेद का उल्लंघन करता है |
12 ) रूपये के प्रतीक का जो आकार है , वह बहुत छोटा है और पढ़ने योग्य नहीं है | इसके आलावा कम्पूटर स्क्रीन पर पूर्णता: दिखाई नहीं पड़ता | DIT Doc.
अब जबकि मामला हाईकोर्ट में है , याचिकाकर्ता ने बेंच से अनुरोध किया है कि वह याचिका को जनहित याचिका में तब्दील करना चाहता है ताकि दिशा- निर्देशों तथा धांधली पर सवाल उठ सकें |
इसके मद्देनजर बुधवार को कार्यवाहक चीफ जस्टिस ए.के. सीकरी की अध्यक्षता वाली पीठ ने याचिका स्वीकार कर केंद्र सरकार के वकील जतन सिन्हा को चार सप्ताह के भीतर काउंटर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है |
अदालत ने गृह मंत्रालय से पूछा है कि अगर ऐसे प्रतीकों के चयन में सार्वजानिक प्रतियोगिताएं के आयोजन के दिशा-निर्देश हैं और यह सभी नागरिकों को सामान अवसर सुनिश्चित करता है तो कोर्ट को बताया जाये |
वहीँ राकेश कुमार सिंह ने रूपये के अलावा अन्य पांच प्रतीकों के चयन में भी हुई धांधली पर प्रकाश डाला है | उन्होंने कहा है कि इन प्रतीकों के चयन में लोकतान्त्रिक प्रक्रिया का अभाव है | ऐसे प्रतियोगिताओं में भागीदारी की कमी तथा एक विशेष समूह को लाभ दिया जाना दुर्भाग्यपूर्ण है |
सिंह ने कहा कि इस सार्वजानिक प्रतियोगिता के लिए जो विज्ञापन जारी किये गए वह सिर्फ अंगरेजी में ही थे और यह राजभाषा अधिनियम का उल्लंघन है | इसके साथ-साथ यूआईडी प्रतीक के चयन में भी प्रविष्टियों को केवल ई -मेल द्वारा माँगा गया जिससे कम्पुटर की जानकारी नहीं रखने वाले लोग प्रतियोगिता से वंचित रह गए |
बहरहाल ,रूपये सहित अन्य पांच राष्ट्रीय महत्त्व के चिन्ह (LOGO) के चयन प्रक्रिया के विरुद्ध दायर याचिका का दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा स्वीकार करना मामले में न्याय की उम्मीद जगता है | लेकिन इस खबर को में स्ट्रीम मीडिया में कोई तवज्जो नहीं दिया जाना इस बात का प्रमाण है कि केन्द्रीय सत्ता का दबाव किस तरह से मीडिया को काबू में रखता है |
(साभार : http://www.janokti.com)यह समाचार स्वंय श्री राकेश कुमार सिंह की अनुरोध पर प्रकाशित किया गया है)
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