भारत के लिए पहला विश्वकप जीतने वाली टीम के कप्तान कपिलदेव ने कहा है कि देश का हर क्रिकेटर भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के प्रति जवाबदेह नहीं है और बोर्ड उसकी नीतियों से हटकर चलने वाले क्रिकेटर से कोई सवाल नहीं पूछ सकता है।
बीसीसीआई ने हाल में जिन खिलाडियों को एकमुश्त भुगतान के लिए चुना था, उनमें कपिलदेव को शामिल नहीं किया गया था1 माना जा रहा है कि कपिलदेव को अब अपना अस्तित्व खो चुकी बागी इंडियन क्रिकेट लीग (आईसीएल) से जुडने का नुकसान उठाना पड़ा है।
कपिलदेव ने एक अखबार में अपने स्तंभ में लिखा 'बोर्ड को यह समझना चाहिए उसके द्वारा अनुबंधित पूर्व या मौजूदा क्रिकेटर या उससे वेतन पाने वाले लोग जैसे चयनकर्ता और कोच ही उसके प्रति जवाबदेह हैं। देश का हर क्रिकेटर बोर्ड के प्रति जवाबदेह नहीं है।
उन्होंने कहा आप किसी खिलाड़ी से उसका अधिकार नहीं छीन सकते हो जो कि उसे देश के लिए खेलने के लिए दिया जा रहा हो। अगर आप स्वर्गीय नवाब पटौदी, सुनील गावस्कर या रवि शास्त्री की तरह बोर्ड से पैसे ले रहे हों तो यह उसका अधिकार है कि वह आपसे सवाल जवाब करे लेकिन दिलीप वेंगसरकर बोर्ड के प्रति जवाबदेह नहीं हैं क्योंकि उन्हें बोर्ड से कोई पैसा नहीं मिल रहा है।
बागी आईसीएल से जुडने का जिक्र करते हुए कपिल ने कहा कि वह खेल को बढ़ावा देने के लिए इस लीग से जुडे थे। उन्होंने कहा अगर वे मेरे खेल को मान्यता नहीं देना चाहते हैं तो उन्हें धन्यवाद कहकर आगे बढ जाऊंगा। मैं आईसीएल से इसलिए जुडा था क्योंकि अगर कोई मुझे कोई काम देता है तो मैं उसे करना पसंद करूंगा। खासकर जब यह खेल को बढ़ावा देने से जुडा मामला हो।
उन्होंने कहा बोर्ड जो कर रहा है और मैंने जो किया उसमें एक बात समान है और वह है खेल को बढावा देना। अगर ऐसा करके मैंने किसी का दिल दु:खाया है तो इसमें मैं क्या कर सकता हूं। मैं यही कह सकता हूं कि मेरा मकसद किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं था लेकिन अगर इसे इस तरह लिया गया तो यह अच्छी बात नहीं है।
बीसीसीआई ने कपिलदेव के साथ-साथ 1983 में विश्वकप जीतने वाली टीम के उनके सहयोगी कीर्ति आजाद को भी एकमुश्त भुगतान पाने वाले खिलाड़ियों की सूची में जगह नहीं दी। कीर्ति ने आईपीएल से जुड़े विवादों को संसद में जोरशोर से उठाया था। कपिल ने कहा कि बोर्ड को कीर्ति से बात करनी चाहिए थी और उनका पक्ष सुनकर मामले को सुलझाना चाहिए था।
कपिल ने कहा कीर्ति भारतीय टीम के खिलाड़ी रहे और अब संसद सदस्य हैं। बीसीसीआई को यह सुनिश्चित करना चाहिए था कि वह संसद में उसकी आवाज बनें। यह बोर्ड की ड्यूटी थी कि वह इस बात को जानने की कोशिश करता कि कीर्ति ने आईपीएल के खिलाफ आवाज क्यों उठाई। मुझे कीर्ति, अजहर, सिद्धू और सचिन जैसे क्रिकेटरों के संसद में जाने पर गर्व है। बोर्ड को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ये खिलाड़ी देश की नीतियां बनाने वाली संसद में उसका पक्ष रखें।
0 comments :
Post a Comment