राजनीति में आने से पहले राहुल गांधी ने फर्जी नाम से लंदन की एक कंपनी में तीन साल तक नौकरी की। यह सनसनीखेज खुलासा किया है आरती रामचंद्रन की किताब ‘डिकोडिंग राहुल गाँधी' में। किताब के अनुसार राहुल लंदन में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के मैनेजमेंट गुरू माइकल पोर्टर की प्रबंधन परामर्शक कंपनी मॉनिटर में काम करते थे लेकिन इसके बावजूद उनसे जुड़ी कोई जानकारी उनके सहकर्मियों तक से साझा नहीं की जाती थी।
रामचंद्रन के अनुसार ‘मॉनिटर' कंपनी बहुराष्ट्रीय कंपनियों, सरकारों और गैर-लाभकारी संस्थाओं के साथ काम करती थी। जब कंपनी से राहुल के संबंध में जानकारी मांगी गई तो उसने कोई भी जानकारी मुहैया करवाने से इंकार कर दिया, यहां तक कि राहुल के सहकर्मियों से साक्षात्कार के लिए भी इजाजत नहीं दी। इसके बावजूद कंपनी से जुड़े माइकल गोल्डबर्ग के एक ईमेल से इस बात की पुष्टि हो गई कि राहुल ने कंपनी में जून 1996 से लेकर मार्च 1999 तक काम किया।
कंपनी में काम करने के समय से राहुल के जानकार एक सूत्र ने इस बात का खुलासा किया कि कंपनी में राहुल फर्जी नाम से नौकरी करते थे और उनके सहकर्मी भी उनकी वास्तविक पहचान से अनभिज्ञ थे। किताब में राहुल से जुड़े और भी कई पहलुओं पर रोशनी डाली गई है। हालांकि इस बात पर कोई खुलासा नहीं किया गया है कि आखिर फर्जी नाम से राहुल को नौकरी करने की जरूरत क्या थी? किताब में इस बात का हवाला भी दिया गया है कि राहुल एमबीए की डिग्री हासिल करना चाहते थे लेकिन ऐसा नहीं करने के बावजूद भी उन्होंने प्रबंधन परामर्श के करियर को ही चुना और इसी क्षेत्र में ‘मॉनिटर' कंपनी में काम किया।
राहुल गांधी को बचपन में भूतों से बहुत डर लगता था। नवंबर 2010 में दिल्ली के एक स्कूल में एक विज्ञान मेले के उद्घाटन के मौके पर खुद राहुल ने बताया कि उन्हें बचपन में अंधेरे से डर लगता था क्योंकि उन्हें लगता था कि अंधेरे में भूत और बुरी आत्माओं का वास होता है। तब एक दिन उनकी दादी ने उन्हें कहा कि अंधेरे में घुसकर देखो कि इसमें क्या है। लिहाजा वह अंधेरे में गए और टहलते रहे, तभी उन्होंने महसूस किया कि अंधेरे में ऐसा कुछ नहीं होता कि इससे डरा जाए।
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