केंद्र की महत्त्वाकांक्षी (वैसे नेताओं और अधिकारियों के लिए पैसा बनाने की मशीन) महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत काम करने में हिमाचल के ग्रामीण रुचि नहीं ले रहे हैं। मौजूदा वित्त वर्ष के करीब छह माह बीत जाने पर प्रदेश के मात्र 33 फीसदी जॉब कार्डधारकों ने ही मनरेगा के तहत काम को आवेदन किया है, जबकि 66.27 फीसदी लोग ऐसे हैं, जिन्होंने एक भी दिन मनरेगा के तहत काम नहीं मांगा है। इससे मनरेगा योजना के सफल कार्यान्वयन पर भी सवाल उठने लगे है। हिमाचल में मनरेगा से अब तक 11 लाख 21 हजार 615 ग्रामीण जुड़ चुके हैं। इन्हें विभाग द्वारा जॉब कार्ड दिए जा चुके है।
सभी जॉब कार्डधारकों को मनरेगा के तहत साल में 100 दिन रोजगार पाने का कानून हक है, लेकिन हिमाचल में सात लाख 43 हजार 341 जॉब कार्डधारकों ने मनरेगा के तहत काम करने में रुचि नहीं दिखाई है। राज्य में इससे मनरेगा के तहत विभिन्न विकास कार्य ठप पड़े हैं। इन्हें निपटाने के लिए पर्याप्त मात्रा में दिहाड़ीदार नहीं मिल रहे हैं। बुद्धिजीवियों की मानें तो हिमाचल में मनरेगा के तहत दी जा रही 128 रुपए की दिहाड़ी अन्य राज्यों की तुलना में बहुत कम है। यही वजह है कि लोग मनरेगा के तहत काम को आगे नहीं आ रहे हैं।
मंडी के 2.11 लाख जॉब कार्डधारकों में से 1.10 लाख लोग मनरेगा के तहत काम को आवेदन कर चुके है। चंबा के 1.00 लाख जॉब कार्डधारकों में से 52.23 हजार जॉब कार्डधारकों ने मनरेगा के तहत काम में रुचि दिखाई है। कांगड़ा के 2.28 लाख ग्रामीणों में से मात्र 62.09 हजार लोगों, बिलासपुर के 56.13 हजार में से 13.39 हजार, हमीरपुर के 81.40 हजार में से 18.40 हजार, कुल्लू के 87.49 हजार लोगों में से 29.84 हजार तथा ऊना जिला के 69.61 हजार जॉब कार्डधारकों में से 11.68 हजार लोगों ने ही मनरेगा के तहत काम को आवेदन किया है। पंचायती राज विभाग के उप निदेशक बीडी शर्मा के मुताबिक मनरेगा डिमांड आधारित योजना है। जो व्यक्ति काम के लिए पंचायत में आवेदन करता है, उन्हें निर्धारित समय अवधि में रोजगार दे दिया है
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