भूमि अधिग्रहण विधेयक के मसौदे में संशोधनों में कांग्रेस के बजाय कृषि मंत्री शरद पवार की ही चली। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के 80 फीसद किसानों की सहमति के सुझाव को जीओएम की सिफारिशों में शामिल न करने के पीछे पवार ने यह दलील दी है कि मंत्रियों के समूह [जीओएम] में इस मसले पर चर्चा ही नहीं हुई थी।
कृषि मंत्री पवार भूमि अधिग्रहण बिल का मसौदा तैयार करने के लिए गठित मंत्रिसमूह के अध्यक्ष थे। जीओएम की चारों बैठकों में भूमि अधिग्रहण से प्रभावित भूमि स्वामियों में कम से कम 67 फीसद यानी दो तिहाई की सहमति को अनिवार्य बनाने पर जोर दिया गया था। हालांकि विधेयक के मूल मसौदे में 80 फीसदी किसानों अथवा भूमि स्वामियों की सहमति का प्रस्ताव था। निवेशकों को आकर्षित करने के लिहाज से वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा, शहरी विकास मंत्री कमलनाथ के अलावा सड़क परिवहन और रेल मंत्री सीपी जोशी के दबाव में इसे सरल बनाने की सिफारिश की गई।
भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन संबंधी सिफारिशों पर कांग्रेस हाईकमान ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए प्रावधानों में कोई ढील न देने को कहा था। इसके बाद जीओएम में शामिल कांग्रेस के ज्यादातर मंत्रियों ने इसे दोबारा 80 फीसदी करने पर जोर दिया, लेकिन पवार ने ऐसा करने से यह कहकर मना कर दिया कि जीओएम की बैठकों में इस तरह की चर्चा नहीं हुई थी और अब जीओएम भंग किया जा चुका है। लिहाजा, इन सिफारिशों में कुछ और शामिल करना अथवा तब्दीली संभव नहीं है।
पवार ने विधेयक के मसौदे में अपने मनमाफिक सिफारिशें लॉजिस्टिक पार्क और कृषि उत्पादों के लिए खाद्य प्रसंस्करण परियोजनाओं समेत कई संशोधनों को शामिल करा लिया है। सहयोगी मंत्रियों को भेजे गए मसौदे में अब मूल प्रावधानों के बजाय हाशिये पर तीन विकल्पों के रूप में इसका जिक्र किया गया है। इन विकल्पों में दो तिहाई लोगों की सहमति के साथ 80 फीसद और 90 फीसद का विकल्प भी रखा गया है। माना जा रहा है कि कैबिनेट नोट में भी इसी तरह का प्रावधान किया जाएगा, ताकि कैबिनेट इस पर आसानी से विचार कर सके।
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