विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक विकासशील देशों में बिक रही 10 प्रतिशत दवाएं या तो नकली हैं या फिर घटिया स्तर की हैं। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक सबसे ज्यादा नकली दवा मलेरिया के उपचार के लिए बिकने वाली दवाओं के रूप में हैं, क्योंकि एशिया और अफ्रीका के ज्यादातर हिस्से में इस बीमारी का सर्वाधिक प्रकोप है, इसलिए इसके उपचार की दवाओं की यहां सबसे ज्यादा मांग है।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक विकासशील देशों के साथ ही नकली दवाओं के कारोबार का खतरा विकसित देशों में भी कम नहीं है। फार्मा कंपनी रोश की ओर से कैंसर के उपचार के लिए बनाई गई सबसे प्रभावी दवा एवास्टीन की नकल हाल ही में अमरीकी बाजार से बड़ी संख्या में जब्त की गई है। इसके अलावा मिनिंजाइटिस के उपचार के लिए लगाए जाने वाले स्टेरायड इंजेक्शन भी बड़ी संख्या में यहां नकली पाए गए हैं।
यूरोपीय संघ की बात करें, तो यहां जब्त की जाने वाली नकली वस्तुओं में भी सबसे बड़ी संख्या नकली दवाओं की ही है। भारत का आरोप है कि उसके यहां बनने वाली जेनेरिक यानी कि सस्ती जीवन रक्षक दवाओं से मिल रही कड़ी प्रतिस्पर्धा को देखते हुए विदेशी मुल्कों की सरकारें अपने यहां की दवा कंपनियों को शह दे रही है और इसी कारण बाजार में नकली दवाओं का कारोबार फल फूल रहा है। यही वजह है कि भारत ने अगले सप्ताह ब्यूनस आयर्स में इस मसले पर डब्ल्यूएचओ की प्रस्तावित बैठक में दवा कंपनियों की भागीदारी पर सख्त एतराज किया है। ब्राजील ने भी इस मामले में भारत का समर्थन किया है।
हालांकि इस बैठक में कई गैर सरकारी संगठन और विशेषज्ञ भी अपनी राय रखने के लिए लालायित हैं, लेकिन उन्हें इसमें शरीक नहीं किया जा रहा है। विशेषज्ञों और गैर सरकारी संगठनों का कहना है कि इस विचार मंथन से कुछ नहीं होने वाला। बैठक में सभी पक्षों की राय ली जानी चाहिए, ताकि नकली दवाओं का कारोबार रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी कानून बनाया जा सके।
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