पाकिस्तान के सूक्ष्म जीव विज्ञानी मोहम्मद खलील चिश्ती को उच्चतम न्यायालय ने 20 साल पुराने एक आपराधिक मामले में बुधवार को हत्या के आरोप से बरी कर दिया और उन्हें बिना किसी प्रतिबंध के स्वदेश जाने की अनुमति प्रदान कर दी।
शीर्ष अदालत ने हालांकि, जान बूझकर नुकसान पहुंचाने के मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 324 के तहत उनकी दोषसिद्धि में हस्तक्षेप से इनकार कर दिया और उतनी ही सजा सुनाई जितनी कि वह जेल में पहले ही काट चुके हैं।
न्यायमूर्ति पी. सदाशिवम और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने उल्लेख किया कि चिश्ती भारत में प्रवास के दौरान लगभग एक साल जेल में रहे और न्याय का उद्देश्य उन्हें जेल में बिताई गई अवधि के बराबर ही सजा सुनाकर पूरा हो जाएगा।
पीठ ने चिश्ती को हत्या के आरोप से बरी करते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता की धारा 34 लगाने की कोई आवश्यकता नहीं है जो समान इरादे से किए गए अपराध से संबंधित है।
न्यायालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे चिश्ती को उनके पासपोर्ट सहित सभी दस्तावेज वापस कर दें। चिश्ती बिना किसी प्रतिबंध के पाकिस्तान लौटने को स्वतंत्र हैं।
पीठ ने चिश्ती की उम्र और योग्यता पर भी विचार किया और अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे चिश्ती की बाधा रहित स्वदेश वापसी के लिए हरसंभव कदम उठाएं।
न्यायालय ने 10 मई के अपने आदेश का भी उल्लेख किया और कहा कि चूंकि चिश्ती के खिलाफ आगे किसी कार्यवाही की जरूरत नहीं है, इसलिए पांच लाख रुपए की जमानत राशि उन्हें या उनके द्वारा नामांकित किए गए व्यक्ति को वापस कर दी जानी चाहिए।
0 comments :
Post a Comment