हज के बारे में कहा जाता है कि ये दुनिया में लोगों का सबसे बड़ा सालाना जमावड़ा है। पर्यावरण के जानकार कहते हैं कि इतने बड़े पैमाने पर लोगों का कई दिनों के लिए एक जगह जमा होना जलवायु परिवर्तन पर भी असर डालता है।
मक्का स्थित उल अल-कोरा यूनिवर्सिटी में पर्यावरणीय भौतिक विज्ञान के प्रोफेसर अब्दुल अज़ीज़ स्रूजी कहते हैं, 'ज्यातादर लोग पर्यावरण की ज्यादा चिंता नहीं करते हैं। हज के दौरान मक्का दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार हो जाता है जहां बड़ी संख्या में गाड़ियां दौड़ रही होती हैं, खाना बर्बाद हो रहा होता है और सारी बिजली होटलों में खप रही होती है, इसका पर्यावरण पर भी असर पड़ता है।'
वे खास तौर से इस बात की आलोचना करते हैं कि हज के दौरान लोग पीने के पानी के लिए बड़ी संख्या में प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल करते हैं। ये बोतले किसी कूड़ेदान में नहीं बल्कि यहां-वहां सड़कों पर ही फेंक दी जाती हैं।
मक्का के अधिकारियों के सामने चुनौती है कि वे तीस लाख हाजियों को 'ग्रीन-हज' के लिए कैसे प्रेरित करें। उन्होंने तय किया है कि वे मक्का को पर्यावरण के हिसाब से बेहतर शहर बनाएंगे।
मक्का के मेयर ओसामा अल-बार कहते हैं कि वो मस्जिदों के आसपास के इलाकों को 'ईको-फ्रैंडली' बनाना चाहते हैं।
वे कहते हैं, 'हमने एक विशाल सौर ऊर्जा स्टेशन बनाने के लिए दुनियाभर से निविदाएं आमंत्रित की हैं जिससे पूरे मक्का की मस्जिदों, होटलों और सड़कों को रौशन किया जाएगा।'
वे बताते हैं कि एक भूमिगत यातायात प्रणाली विकसित करने की योजना है जिसके दायरे में पूरा शहर आ जाएगा जो 120 किलोमीटर लंबा होगी। इसमें 28 स्टेशन होंगे। इससे हज के दौरान मक्का में यातायात बाधित होने की समस्या से मुक्ति मिलेगी।
पिछले साल एक मोनो रेल का प्रयोग भी किया गया था लेकिन सऊदी अरब में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की संस्कृति अभी तक विकसित नहीं हो पाई है।
पर्यावरण के जानकार कहते हैं कि पेट्रोल सस्ता होने और लोगों के यहां बड़ी कारें पसंद करने से सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को प्रोत्साहन नहीं मिल पा रहा है।
हज और हवाई जहाज : प्रोफेसर अब्दुल अजीज कहते हैं कि ज्यादातर लोग हजयात्रा के लिए हवाई जहाज़ से आते हैं, हवाई यातायात से पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ता है।
उनका कहना है, 'जरा सोचिए, हवाई जहाजों की वजह से ओजोन परत को कितना नुकसान हो सकता है।'
ओज़ोन परत को नुकसान होने से सूरज से निकलने वाली जानलेवा अल्ट्रा-वॉयलेट किरणें धरती तक पहुंच जाती हैं। वैसे बोस्निया हर्जेगोविना से आए एक मुसलमान ने इस साल अपनी हज यात्रा पूरी तरह से 'ईको-फ्रैंडली' अंदाज में की, वे पैदल चलकर मक्का आए।
इसी तरह साल 2010 में दक्षिण अफ्रीका से दो युवक नौ महीने की यात्रा साइकल से तय करके हज के लिए मक्का पहुंचे थे।
प्रोफेसर अब्दुल अजीज मक्का के पर्यावरण को बचाने के लिए दो तरीके सुझाते हैं- पहला कुछ खास रास्तों पर कारों पर प्रतिबंध और पूरे शहर में कचरा-पेटी रखना जो कचरे का पुनर्चक्रण कर सकें।
लेकिन उन्हें इस बात का अफसोस है कि हज पर आने वालों के लिए 'जलवायु परिवर्तन कोई प्राथमिकता' नहीं है।
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