पिछली ढाई शताब्दियों से हिंदू राष्ट्र रहे नेपाल में जब पांच साल पहले राजतंत्र खत्म हुआ, तो देश के राजभक्त राजनीतिक तौर पर विलुप्त होने की कगार पर दिखे। लेकिन अब जब हिमालयी राष्ट्र में मंगलवार को चुनाव होने जा रहे हैं, तो एक राजभक्त पार्टी हिंदुत्व के एजेंडे पर समर्थन जुटाने की कोशिशें कर रही है।
नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी, जो लगातार संवैधानिक राजतंत्र की वापसी पर ज़ोर देती रही है, ने अपने प्रचार अभियान का फोकस एक दफा फिर नेपाल को एक हिंदू राष्ट्र बनाने पर रखा है। गौरतलब है कि 2008 में नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र घोषित किया गया था। इस पार्टी के नेता कमल थापा ने हालिया महीनों में देश का व्यापक दौरा किया और अपनी पार्टी के लिए वोट मांगे। राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी का चुनावी चिन्ह गाय है, जिसे हिंदू धर्म में पवित्र समझा जाता है।
दूसरी संविधान सभा के लिए नेपाली मंगलवार को वोट डालेगें। पहली के नए संविधान हेतु मूलभूत प्रावधानों पर असहमत होने के बाद ये सभा बतौर संसद भी काम करेगी। हालांकि संघवाद और आर्थिक विकास चुनावों के मुख्य मुद्दे हैं, श्री थापा और उनकी राजभक्त पार्टी हिंदू-बहुल राष्ट्र में धार्मिक भावनाओं को उत्तेजित कर प्रासंगिक बने रहने की उम्मीद कर रही है।
आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, नेपाल की 27 मिलियन जनसंख्या में 81 फीसदी हिंदू, 9 फीसदी बौद्ध, 4.4 फीसदी मुस्लिम और 1.4 फीसदी ईसाई हैं। नेपाल में कई और नस्लीय समूह भी रहते हैं, जो अपने-अपने धर्मों का पालन करते हैं।
पिछले 240 सालों से, नेपाल एक हिंदू राष्ट्र था, जिस पर शाह वंश का शासन था। वहां के हुक्मरानों को भगवान विष्णु के अवतारों के रूप में श्रद्धेय माना जाता रहा है। वे बड़े हिंदू त्योहारों के दौरान धार्मिक कृत्यों का निर्वाहन सार्वजनिक तौर पर करते रहे हैं।
2006 में, लोकतंत्र के लिए हुए एक लोकप्रिय विद्रोह में राजा को सत्ताच्युत कर दिया गया और एक शांति समझौते के तहत 10 सालों तक गृह युद्ध लड़ने वाले पूर्व माओवादी विद्रोहियों को राजनीतिक मुख्यधारा में लाया गया। समझौते के मुताबिक, नेपाल को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया।
“नेपाल में, राजतंत्र और हिंदुत्व एक ही सिक्के के दो पहलू हैं,” काठमांडू के राजनीतिक विश्लेषक हरी शर्मा ने कहा। “राजतंत्र के खत्म होने के बाद, हिंदू धर्म को राष्ट्र धर्म बनाने का तर्काधार अब मौजूद नहीं है,” उन्होंने कहा।
धर्मनिरपेक्षता के समर्थक नेपाल के व्यापक, हिंदू-बहुल पड़ोसी भारत की तरफ इंगित करते हैं, जो एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है और जहां संवैधानिक तौर पर सारे धर्म समान हैं। हालांकि, धार्मिक और अल्पसंख्यक अधिकार भारत की चुनावी राजनीति का एक बड़ा विषय बने हुए हैं। भारत में धर्मनिरपेक्ष प्रवृत्ति वाली कांग्रेस, हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी से मुख्य मुकाबले में है। अगले साल होने वाले आम चुनावों में बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को व्यापक तौर पर एक कट्टरवादी हिंदू नेता माना जाता है।
श्री थापा चेताते हैं कि भारत ने जो गलती की है, वैसी गलती नेपाल को नहीं करनी चाहिए। वह दलील देते हैं कि नेपाल की राष्ट्रीय पहचान हिंदुत्व से है। वे देश के मुख्य राजनीतिक दलों पर हिंदू बहुसंख्यकों की इच्छाओं के खिलाफ देश को जबरन धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाने का आरोप लगाते हैं।
“संविधान में ये संस्थापित किया जाना चाहिए कि नेपाल एक हिंदू राष्ट्र है। इसका ये अर्थ नहीं कि नेपाल एक धर्मशासित देश बन जाएगा। ये महज़ नेपाल की सांस्कृतिक वास्तविकता की स्वीकारोक्ति होगी,” श्री थापा ने कहा।
विश्लेषक कहते हैं कि श्री थापा उस नेपाल के ध्रुवीकृत राजनीतिक वातावरण और जातीय चेतना के विस्फोट का लाभ उठाने की कोशिश कर रहे हैं, जहां कुछ लोगों ने नस्ल-आधारित राज्य बनाने का प्रस्ताव रखा था। ये मुद्दा नेपालियों के बीच दरार पैदा कर सकता है और राजनीतिक दलों को संविधान पूरा करने से रोक सकता है।
“राजनीति में नस्ल और क्षेत्र के आधार पर ध्रुवीकरण हो रहा है, लिहाज़ा कुछ नेता सोचते हैं कि इन मुद्दों के प्रत्युत्तर में हिंदुत्व का इस्तेमाल किया जा सकता है,” नेपाल की त्रिभुवन यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र के प्रोफेसर चैतन्य मिश्रा ने कहा। “वे सोचते हैं कि हिंदुत्व की बातें कर वे लोगों को एकजुट कर सकते हैं,” उन्होंने आगे जोड़ा।
इन चुनावों में श्री थापा की पार्टी बामुश्किल शीर्ष तीन में जगह बना पाए। फिर भी, उम्मीदतन 2008 के मुकाबले वो ज्यादा मत हासिल करेगी, विश्लेषक कहते हैं। पिछले चुनावों में इस पार्टी ने महज़ चार सीटें जीती थीं।
नेपाल की चुनावी व्यवस्था के तहत, नागरिक पहला वोट उम्मीदवार और दूसरा पार्टी के लिए डालते हैं। कई साक्षात्कारों में, नेपाली हिंदुओं ने कहा कि वो अपना दूसरा मत नेपाल की राष्ट्रीय पशु और देश के धार्मिक कृत्यों में महत्वपूर्ण मानी जाने वाली गाय को देगें। नेपाल में गौवध पर पाबंदी है।
“हिंदू धर्म के बगैर, नेपाल के अस्तित्व का आधार क्या है?” काठमांडू स्थित पशुपतिनाथ मंदिर की देहरी पर खड़े 60 वर्षीय हरी प्रसाद पांडे ने कहा। “सब-कुछ बिखर जाएगा,” उन्होंने आगे जोड़ा।
श्री थापा ने ये दावा ठोकते हुए अपने प्रचार-अभियान को सहारा दिया कि देश में ईसाई आबादी तेज़ी से बढ़ रही है और वे नेपाली हिंदुओं को मुफ्त शिक्षा, नौकरियां देकर उनका धर्मांतरण कर रहे हैं। ईसाई समूह कहते हैं कि धर्मांतरण हो रहे हैं, लेकिन उन्होंने इसके लिए प्रोत्साहन हेतु आर्थिक अथवा दूसरी तरह के सहयोग की बातों से इन्कार किया।
नेशनल काउंसिल फोर चर्चेज़ इन नेपाल (नेपाल की राष्ट्रीय चर्च परिषद) के महासचिव के.बी.रोकाया ने कहा कि ईसाई अब स्वतंत्रतापूर्वक अपने धर्म का प्रचार कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि हिंदू इसलिए धर्मांतरण कर रहे हैं क्योंकि उनमें से कई कठोर जाति व्यवस्था से उत्पीड़ित और महंगे धार्मिक कृत्यों से दबा हुआ महसूस करते हैं। श्री रोकाया ने श्री थापा के हिंदू-समर्थित प्रचार-अभियान का कड़ा विरोध किया और उसे ‘प्रतिगामी’ और ‘लोकतंत्र-विरोधी’ कहा।
“कई जानें गईं तब जाकर नेपाल एक धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक देश बन पाया,” उन्होंने कहा। “किसी को भी उसे चुनौती देने की इजाज़त नहीं दी जानी चाहिए,” श्री रोकाया ने कहा।