पूर्व क्रिकेटर और माफिया सरगना दाउद इब्राहिम के समधी जावेद मियांदाद को दिल्ली आने के लिए वीजा देने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। भाजपा और शिवसेना के अलावा कांग्रेस के एक सांसद ने भी मियांदाद को वीजा देने का कड़ा विरोध किया है। विशेषज्ञ भी दाउद के समधी को वीजा दिए जाने पर सवाल खड़े कर रहे हैं।
विशेषज्ञों का सवाल है कि क्या भारत सरकार मुंबई के जख्म को भूल गई है। खबर यह भी है कि मियांदाद को कोलकाता में खेले गए दूसरे वनडे के बाद सम्मानित किया जाना था लेकिन वह नहीं आए। पीसीबी के चीफ जका अशरफ ने कहा है कि जहां तक मुझे जानकारी है उन्होंने वीजा के लिए आवेदन नहीं किया है। इसलिए वह नहीं आए।
खबर है कि भारत सरकार ने सुरक्षा एजेंसियों की आपत्ति के बावजूद मियांदाद को वीजा दिया है। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक मियांदाद को वीजा देने का फैसला प्रधानमंत्री कार्यालय के स्तर पर हुआ था। एक खुफिया अधिकारी ने बताया कि मियांदाद को वीजा देने का फैसला पूरी तरह से राजनीतिक और कूटनीतक है। दिसंबर में पाकिस्तान के गृह मंत्री रहमान मलिक की भारत यात्रा को मंजूरी दी गई थी। उसी आधार पर मियांदाद को वीजा देने का फैसला लिया गया। खुफिया एजेंसिया इस कदम से हैरान नहीं है। वे भारत सरकार के फैसले से खुश नहीं है।
एक खुफिया अधिकारी के मुताबिक 2005 में जब दाउद इब्राहिम की बेटी की शादी मियांदाद के बेटे से हुई थी तब से उसका परिवार खुफिया एजेंसियों की नजर में था। तब सैद्धांति तौर पर यह फैसला लिया गया था उन्हें भारत आने की अनुमति नहीं दी जाएगी। तब से इस मामले में कुछ भी बदलाव नहीं हुआ है। हमें उन्हें भारत आने की अनुमति नहीं देनी चाहिए। मियांदाद को भारत आने से रोकने का फैसला तब के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार एमके नारायणन और आईबीए के प्रमुख ईएसएल नरसिम्हन ने लिया था। नारायणन इस समय पश्चिम बंगाल के राज्यपाल हैं और नरसिम्हन आंध्र प्रदेश के।
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