वीरभद्र सिंह का विरोध करते रहे करीब आधा दर्जन विधायक हिमाचल में बनी कांग्रेस की सरकार में जगह पाने के लिए दिल्ली के दरबार जा पहुंचे हैं। सूत्रों के अनुसार राज्य कांग्रेस के प्रभारी चौधरी वीरेंद्र सिंह की मार्फत इन लोगों ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मिलने का समय मांगा है। इनका कहना है कि वीरभद्र सरकार में इन्हें न तो कोई अहमियत मिल रही है और न ही कोई सम्मान। सरकार में भी केवल वीरभद्र समर्थकों को ही एडजस्ट किया जा रहा है।
जानकारी के अनुसार हाईकमान के दबाव के सहारे यह लोग एक तो प्रदेश मंत्रिमंडल में खाली पड़े दो पदों को लेना चाह रहे हैं दूसरे इनकी नजरें विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष की कुर्सी पर है। इनकी यह भी कोशिश है कि मुख्य संसदीय और संसदीय सचिवों की नियुक्तियों में भी इन्हें तरजीह मिले। विभिन्न निगमों और बोर्डों के अध्यक्षों व उपाध्यक्षों पर होने वाली ताजपोशियों में भी यह लोग अपनी हिस्सेदारी चाह रहे हैं।
गौरतलब है कि राज्य मंत्रिमंडल में अभी दो और मंत्रियों को शामिल किया जाना है। इसके अलावा 8 जनवरी से शुरू हो रहे हिमाचल विधानसभा के पहले सत्र में अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पदों पर भी दो विधायकों को पदासीन किया जाना है। मंत्रिपद के दावेदारों के तौर पर इस समय पूर्व मंत्री अनिल शर्मा और कर्ण सिंह के नाम सबसे ऊपर चल रहे हैं। अगर यह दोनों मंत्री बन जाते हैं तो उस सूरत में मंत्रिपद के अन्य दावेदारों के मंत्री बनने की सम्भावनाएं समाप्त हो जाएगी।
यही वजह है कि यह लोग पहले से ही दबाव बनाकर अपना रास्ता साफ करना चाह रहे हैं। जो विधायक दिल्ली में डेरा जमाए हुए हैं उनमें से दो मंत्रिपद ही नहीं बल्कि विधानसभा अध्यक्ष या उपाध्यक्ष के प्रबल दावेदार माने जा रहे हैं। शेष चार विधायक ऐसे हैं जिन्हें अन्य स्थानों पर भी एडजस्ट किया जा सकता है।
वीरभद्र मंत्रिमंडल में हालांकि समर्थकों और विरोधियों दोनों को जगह मिली है लेकिन फिर भी कई विधायक नाराज चल रहे हैं। सबसे अधिक नाराज पूर्व मंत्री आशा कुमारी और बृजबिहारी बुटेल माने जा रहे हैं। इनके अलावा रवि ठाकुर, सोहन लाल, राकेश कालिया और किशोरी लाल जैसे विधायकों के नाम भी इस तरह के विधायकों में शामिल हैं। यहां यह जानना जरूरी है कि स्वास्थ्य मंत्री ठाकुर कौल सिंह और खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री जीएस बाली भी हाईकमान के दबाव से ही मंत्री बन पाए हैं।
यह दोनों पहले जहां मुख्यमंत्री पद के दावेदार थे, वहीं बाद में इन्हें उप मुख्यमंत्री बनाए जाने की चर्चाएं भी चली। पूर्व मंत्री आशा कुमारी को भी पहले मंत्री बनाया जा रहा था लेकिन बाद में उनका नाम कट गया। वीरभद्र सिंह को क्योंकि मुख्यमंत्री बनने के बाद अब प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद छोडऩा पड़ेगा इसलिए इस पद भी किसी की ताजपोशी होगी। बताया जाता है कि वीरभद्र समर्थक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद पर अपने किसी खासमखास की तैनाती के लिए प्रयास कर रहे हैं लेकिन विरोधी धड़े के अड़ जाने की वजह से मामला लटका हुआ है।
वीरभद्र सिंह समर्थकों के तौर पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए पूर्व मंत्री रंगीला राम राव, चंद्र कुमार ओर गंगूराम मुसाफिर जैसे लोगों के नाम लिए जा रहे हैं जबकि विरोधी खेमा अपने लोगों में से किसी एक को इस पद पर चाह रहा है। अखिल भारतीय कांग्रेस समिति की सचिव आशा कुमारी का नाम भी यह लोग अध्यक्ष पद के लिए चला रहे हैं। इसी तरह विरोधी खेमे का यह प्रयास भी है कि विधानसभा अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद भी झटक लिए जाएं।
विधानसभा अध्यक्ष के पद के लिए पूर्व मंत्री कुलदीप कुमार का नाम चल रहा है। कुलदीप को वीरभद्र समर्थक माना जाता है। अब देखना यह होगा कि अब तक राजनीति के हर मोर्चे पर वीरभद्र सिंह से शिकस्त खा चुके उनके विरोधी अपनी इस आखिरी लड़ाई को जीत पाते है या नहीं।
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