मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एमआईएम) विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी आखिर चाहता क्या हैं..? क्या वह अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय को एक-दूसरे का दुश्मन बनाना चाहता हैं..? या फिर अपनी भड़काऊ बयानबाजी से आंध्रप्रदेश की कांग्रेस सरकार और केन्द्र की कांग्रेस नीत यूपीए सरकार को चुनौती देना चाहते हैं कि यदि हिम्मत है तो मेरे खिलाफ कार्रवाई कर के बताओ।
आंध्रप्रदेश के चंद्रायानगुट्टा विधानसभा क्षेत्र से विधायक ओवैसी ने पिछले दिनों एक सभा में बहुसंख्यक समुदाय के खिलाफ निहायत ही शर्मनाक टिप्पणियां की हैं, जिनका यहां उल्लेख नहीं किया जा सकता। ...लेकिन आश्चर्यजनक रूप से केन्द्र सरकार की इस मामले में चुप्पी इस ओर इशारा अवश्य करती है कि उसकी धर्मनिरपेक्षता (?) कितनी छद्म है। और यह दर्शाता है कि कांग्रेस का समर्थन ओवैसी को प्राप्त है, खासकर राहुल गाँधी तो ओवैसी के बहुत करीबी माने जाते हैं .
यह भी हो सकता है कि कांग्रेस सरकार ओवैसी की इस 'जहरीली टिप्पणी' में भी वोटों का गणित ढूंढ रही हो। अन्यथा ऐसा क्या है कि कांग्रेस के किसी भी नेता का बयान इसके विरोध में नहीं आया। इसी कांग्रेस के नेताओं ने भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाए गए अन्ना हजारे के आंदोलन को नाकाम करने के लिए क्या-क्या नहीं कहा था। उस समय के प्रवक्ता (वर्तमान में मंत्री) मनीष तिवारी तो अन्ना के विरोध में बोलते समय तमाम मर्यादाओं को लांघ गए थे।
अकबरुद्दीन ओवैसी, जिसके सांसद भाई का केन्द्र की यूपीए सरकार को समर्थन प्राप्त है, ने तो गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी की तुलना अजमल कसाब से कर डाली। उन्होंने कहा कि 200 निर्दोष लोगों को मारने वाले कसाब को इसलिए फांसी दे दी गई क्योंकि वह पाकिस्तान से आया था, जबकि दो हजार लोगों की हत्या के गुनहगार मोदी को गद्दी मिली।
हालांकि एक वकील ने ओवैसी के खिलाफ अदालत में एक याचिका दाखिल की है, लेकिन इस पूरे मामले में कांग्रेस सरकार की चुप्पी से संदेह पैदा होना स्वाभाविक है।
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