इलाहाबाद जंक्शन पर हद दर्जे की लापरवाही की वजह से लगभग 50 से भी ज्यादा हिन्दुओं की जान चली गई। रविवार को हुई लापरवाही सोमवार तक जारी रही। इतना बवंडर होने के बाद भी पोस्टमार्टम के दौरान मानवीयता ताक पर रख दी गई। एसआरएन अस्पताल के पोस्टमार्टम हाउस में शव पर कफन डालने के लिए 12 सौ रुपये वसूले गए। मृतक के घरवालों से ही कफन मंगाया गया।
मामले को लेकर प्रमुख सचिव और डीजीपी की प्रेस कांफ्रेंस में बवाल हो गया। पत्रकारों ने सवाल पूछे तो डीजी को सफाई देनी पड़ी। डीजीपी ने कहा, गलती से एक मृतक के घरवालों ने कफन के रुपये दिए हैं, बाकी सभी मृतकों के कफन सीएमओ ने मंगाए हैं। जिस परिवार ने रुपये दिए हैं उन्हें पैसे वापस दिए जाएंगे। साथ ही इस मामले की जांच भी कराई जा रही है।
पहले जंक्शन पर लापरवाही से भगदड़ मची। फिर अस्पताल में भी अव्यवस्था। मृतकों के शवों को घर पहुंचाने के लिए कोई इंतजाम नहीं। निजी एंबुलेंस वालों ने मृतकों के परिजनों से हजारों रुपये की मांग कर दी। भगदड़ में पत्नी, भाई, बहन की जानें चली गईं, सामान छूट गए तो भला लोगों के पास पैसे कहां से आएं। दूसरी तरफ नेताओं और अफसरों की ओर से तमाम दावे किए जा रहे थे कि पीड़ितो की पूरी मदद की जा रही है।
यही वजह है कि सुबह कमिश्नर देवेश चतुर्वेदी एसआरएन अस्पताल स्थित पोस्टमार्टम हाउस पहुंचे तो वहां मौजूद लोग भड़क उठे। कमिश्नर ने उन्हें हाथ जोड़कर मनाया। शांत कराया। फिर वहां मौजूद सीएमओ डॉ.पदमाकर सिंह और अपर निदेशक स्वास्थ्य डॉ.रमेश श्रीवास्तव को बुलाकर आदेश दिया कि सभी मृतकों के शव घर पहुंचाने की व्यवस्था की जाए। सरकारी खर्चे पर एंबुलेंस से भेजा जाए। तब जाकर सीएमओ और अपर निदेशक ने एंबुलेंस की व्यवस्था की। शाम तक 18 शवों को एंबुलेंस से बिहार समेत दूसरे जिलों में भेजा गया।
मोतिहारी बिहार का एयरफोर्स का जवान पीके मिश्रा सोमवार शाम रेल मंत्री पवन बंसल के सामने जाकर रोने लगा। वह रात से मां जयंती मिश्र की तलाश में भटक रहा था। उसने बताया कि स्टेशन पर उसने डीजीपी के सामने गुहार लगाई तब जीआरपी ने गुम होने की सूचना लिखी। वह बार-बार अपना माथा पीटकर रोने लगता।
‘प्लीज सर, मेरी मां का भी पता लगवा दीजिए। वो कल रात स्टेशन पर भगदड़ के वक्त बिछुड़ गई थी। मैंने हर जगह खोज लिया, अस्पतालों में देख लिया लेकिन वह नहीं मिल रही। मैं उनके बिना घर कतई नहीं लौट सकता सर, मैं भी यहीं मर जाऊंगा, कुछ करिए न।’
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