हालांकि, दोनों पक्ष रामलला का तिरपाल, पन्नी व रस्सियां बदलने पर दोनों पक्ष राजी हैं। ये बातें सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से दाखिल नोट (पत्रक) और भगवान राम विराजमान के निकट मित्र की ओर से दायर हलफनामे में कही गई हैं। मामले की सुनवाई सोमवार को होगी।
मालूम हो कि इलाहाबाद हाई कोर्ट के रजिस्टार जनरल ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर पक्षकार बनाए जाने और राम जन्मभूमि स्थान की निगरानी के लिए नियुक्त पर्यवेक्षकों को वापस बुलाए जाने की अनुमति मांगी हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 26 मार्च 2003 को दो सत्र न्यायाधीशों को पर्यवेक्षक नियुक्त किया था। पर्यवेक्षक हर 15 दिन पर राम जन्मभूमि का दौरा कर अपनी रिपोर्ट देते हैं।
रजिस्ट्रार की अर्जी में कहा गया है कि हाई कोर्ट का फैसला आ चुका है और अब दोनों न्यायिक अधिकारियों को पर्यवेक्षक के कार्य से मुक्त कर दिया जाए। दूसरी ओर, फैजाबाद के कमिश्नर ने सुप्रीम कोर्ट से रामलला की सुरक्षा के लिए लगे तिरपाल, पन्नी और रस्सियों को बदलने की अनुमति मांगी है। कहा गया है कि पहले भी कोर्ट के आदेश पर फटे तिरपाल, पन्नी और रस्सियों को बदला जाता रहा है।
इस मामले की सुनवाई कर रही जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस रंजना प्रकाश देसाई की पीठ के समक्ष सोमवार को सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने एक नोट (पत्रक) पेश किया। उन्होंने कहा कि रामलला का तिरपाल, पन्नी और रस्सियां बदले जाने पर उन्हें आपत्ति नहीं है, लेकिन ऐसा पर्यवेक्षकों की मौजूदगी में होना चाहिए ताकि कोर्ट का यथास्थिति कायम रखने का आदेश प्रभावित न हो। बोर्ड ने पर्यवेक्षक हटाने की हाई कोर्ट की अर्जी का विरोध करते हुए कहा कि मामले में यथास्थिति के लिए पर्यवेक्षकों का बना रहना जरूरी है।
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