वर्ष 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता से पहले पाकिस्तानी सेना ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान में सुनियोजित तरीके से हिंदू समुदाय के जनसंहार को अंजाम दिया था और निक्सन प्रशासन ने इससे आंखें मूंदे रही। एक नई किताब में यह खुलासा किया गया है। ‘द ब्लड टेलीग्राम: निक्सन किसिंगर एंड ए फॉरगॉटन जेनोसाइड’ नामक इस किताब के लेखक गैरी जे बास ने कहा कि हालांकि भारत सरकार इस बारे में जानती थी, लेकिन उसने इसे अधिक महत्व देने के बजाए इसे बांग्लादेश में बंगाली समुदाय के खिलाफ जनसंहार की संज्ञा दी थी, ताकि तत्कालीन जनसंघ के नेताओं इस बात को लेकर हाय तौबा नहीं मचाएं।
प्रिंसटन विश्वविद्यालय में राजनीति और अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर बास कहते हैं, ‘‘इसे मूल रूप से हिंदुओं की प्रताडऩा के रूप में सामने लाने के बजाए भारत ने इसे बंगालियों के विनाश के रूप में पेश करने पर ध्यान केंद्रित किया।’’ बास ने कहा, ‘‘भारतीय विदेश मंत्रालय ने यह तर्क दिया था कि देश में बंगालियों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण चुनाव हार गए पाकिस्तानी जनरल उनकी (बंगालियों की) हत्याएं कर रहे हैं ताकि ‘पूर्वी बंगाल में जनसंख्या में भारी कमी आ सके।’ और यह लोग पाकिस्तान में बहुसंख्यक न बने रह सकें।’’
किताब कहती है कि चूंकि पाकिस्तानी सेना लगातार हिंदू समुदाय को अपना निशाना बना रही थी, ऐसे में भारतीय अधिकारी नहीं चाहते थे कि जन संघ पार्टी के हिंदू राष्ट्रवादी और अधिक भड़कें। बास ने किताब में लिखा है, ‘‘रूस में भारत के राजदूत डी पी धर ने मास्को से पाकिस्तान की सेना पर हिंदुओं को चुन-चुनकर उनकी हत्या करने की पूर्वनियोजित नीति बनाने का दोष लगाया था, लेकिन उन्होंने लिखा है कि जनसंघ जैसे दक्षिणपंथी हिंदू उग्रराष्ट्रवादी दल की उग्र प्रतिक्रिया के भय से हमने इस बात की पूरी कोशिश करी कि यह मामला भारत में प्रचारित न हो।’’ ढाका में तत्कालीन अमेरिकी कूटनीतिज्ञों ने विदेश मंत्रालय और व्हाइट हाउस दोनों को ही लिखा था कि यह हिंदुओं के ‘जनसंहार’ से कम नहीं है।
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