सुब्रमण्यम स्वामी ने सिद्धार्थ वरदराजन की विदेशी नागरिकता पर मुकदमा किया और इसी बहाने ''दि हिंदू'' ने उन्हें संपादकीय मूल्यों से खिलवाड़ करने वाला करार देकर खानदानी कारोबार में अचानक गिरी मक्खी की तरह निकाल बाहर किया। ये इस्तीफा नहीं है, भले इसे इस्तीफा बताया जा रहा हो।
खबर में इस बात पर ध्यान दीजिएगा जब एन.राम कहते हैं कि तमिलनाडु में नरेंद्र मोदी की दो बार रैली हुई लेकिन उसे पहले पन्ने पर नहीं लिया गया क्योंकि सिद्धार्थ ने समाचार डेस्क को निर्देश दिए थे कि मोदी की कोई खबर पहले पन्ने पर नहीं लेनी है। यही बात अखबार के संपादकीय मूल्यों के खिलाफ चली गई। एन. राम के मुताबिक, ''समाचार और विचार में कोई फर्क नहीं बरता जा रहा था।''
यह बहाना नया नहीं है। यह बरसों पुराना आज़माया फॉर्मूला हमेशा ऐसे वक्त में काम आता है जब किसी को नौकरी से निकालना होता है। बस, इस पर नज़र रखिए कि इस मोदीमय फि़ज़ा में किन्हें नौकरियां मिल रही हैं और किनकी नौकरियां जा रही हैं। अपने आप खेल समझ में आ जाएगा।
द हिंदू के संपादक पद से सिद्धार्थ वरदराजन के इस्तीफे के एक दिन बाद इस अखबार के कार्यकारी संपादक एम के वेणु ने भी इस्तीफा दे दिया। कस्तूरी ऐंड संकेएसएल के चेयरमैन का पदभार संभालने वाले एन राम ने मंगलवार को वेणु के इस्तीफे की पुष्टि की है। बिजनेस स्टैंडर्ड के सवालों पर एम के वेणु ने कहा, मैंने कार्यकारी संपादक के पद से इस्तीफा दे दिया है और जल्द ही दूसरे विकल्पों की तलाश करूंगा। यहां इस बात का उल्लेख किया जा सकता है कि वरदराजन ने कहा था कि हिंदू के मालिकों ने इसे पारिवारिक कारोबार की तरह चलाने का फैसला किया है, लिहाजा मैं द हिंदू से इस्तीफा दे रहा हूं। व्यवस्था में परिवर्तन के चलते दोनों ने इस्तीफे दिए हैं।
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