
शरीर स्वच्छ और बलवान हो तो गीता समझी जा सकती है। उपनिषदों में कहा है- शरीर ही धर्म साधने का माध्यम है। इसलिए शरीर हृष्ट-पुष्ट, बलवान और स्वच्छ रहे तभी देव-पूजन किया जा सकता है। यही नरेंद्र मोदी का आशय था।
आम ग्रामीण कहावत है- भूखे भजन न होए गोपाला, यह ले अपनी कंठी माला। इसका अर्थ कांग्रेस के सेकुलर तालिबान नहीं समझेंगे जो मोदी के बहाने हिंदुओं पर निशाना साध कर वोट बैंक की राजनीति कर रहे हैं।
सनातन जीवन मूल्यों की युगानुकूल व्याख्या करते हुए धर्म के शाश्वत स्वरूप को बचाए रखना हिंदू स्वभाव का अंग है। इसी कारण इकबाल को कहना पड़ा- यूनान मिस्र रोमां सब मिट गए जहां से लेकिन अभी है बाकी नामोनिशां हमारा। यही सुधारवादी परंपरा लेकर डाक्टर हेडगेवार ने खेल और व्यायाम के माध्यम से राष्ट्र निर्माण का कार्य प्रारंभ किया जो आज विश्व का सबसे बड़ा हिंदू संगठन बना है।
राम राज्य की कल्पना में सर्वोपरि स्थान दैहिक तापों के शमन को दिया है, फिर दैविक तापों का क्रम आता है। मंदिर की जगह शौचालय बनाने की बात करने वाले पहले अपने घर के मंदिर में टायलेट बना कर दिखाएं और जवाब दें कि अभी तक उनकी सरकार सर पर मैला ढोने की परंपरा क्यों खत्म नहीं कर पाई?
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