मंगलयान की लॉन्चिंग की उलटी गिनती जारी है। यह काउंटडाउन मंगलवार दोपहर दो बजकर 38 मिनट पर खत्म होगा, जब भारत मंगलग्रह के लिए अपना अंतरिक्ष यान लॉन्च करेगा। इसरो के इस मिशन का आधिकारिक नाम 'मार्स आर्बिटर मिशन' है जिसे मंगलयान कहा जा रहा है।
इस अभियान की कमान संभाल रहे इसरो चेयरमैन डॉ. के राधाकृष्णन ने मिशन की शुरुआत से पहले शनिवार को तिरुपति बालाजी के मंदिर में भगवान से प्रार्थना की। दूसरी ओर नासा ने भी इसरो मिशन की कामयाबी के लिए शुभकामनाएं भेजी हैं।
इस अभियान में 1000 वैज्ञानिकों की टीम लगी है। 1350 किलो के इस सैटेलाइट को 15 महीने के रिकॉर्ड टाइम में तैयार किया गया है।
पीएसएलवी सी-25 रॉकेट भारत के पहले मंगलयान को लेकर आंध्र प्रदेश स्थित श्रीहरिकोटा सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से अंतरिक्ष में जाएगा। अगर भारत इस अंतरिक्ष यान को मंगल ग्रह की मुख्य कक्षा में पहुंचाने में सफल रहा तो भारत ऐसी उपलब्धि हासिल करने वाला एशिया में पहला देश बन जाएगा।
मंगलयान को 35 करोड़ किलोमीटर की यात्रा कर मंगल तक पहुंचने में करीब एक साल (320 दिन) लगेगा। अनुमान है कि 24 सितंबर 2014 को यह अंतरिक्ष यान मंगल ग्रह तक पहुंचेगा। इससे पहले इसरो का सबसे लंबी दूरी वाला अभियान चंद्रयान था। 2008 में भारत के इस अभियान के तहत अंतरिक्ष यान को साढ़े तीन हजार किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ी थी।
मंगलयान लॉन्च करने वाला भारत चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले अमेरिका, रूस और यूरोप मंगल के लिए अभियान लॉन्च कर चुके हैं। उनके मंगल यान पर 2393 करोड़ रुपए से लेकर 41669 करोड़ रुपए खर्च हुए जबकि हमारे मंगलयान की लागत सिर्फ 450 करोड़ रुपए आई है। यानी यह अभी तक का सबसे कम लागत का मंगल मिशन होगा।
यह मंगल ग्रह पर जमीन, हवा और खनिज पदार्थों का अनुसंधान करेगा। यह मंगल का नक्शा भी बनाएगा और इससे जुड़े डेटा को वापस भेजेगा। सर्वे का काम करीब छह महीने तक चलेगा। यह यान पता लगाएगा कि मंगल पर पानी क्यों खत्म हुआ। साथ ही वह इस लाल ग्रह पर जीवन की संभावना भी तलाशेगा।
2003 में जापान और 2011 में चीन मंगलयान भेजने की नाकाम कोशिश कर चुके हैं। मंगल ग्रह पर अनुसंधान की होड़ 1960 में शुरू हुई थी जब पहले तत्कालीन सोवियत संघ और बाद में अमेरिका ने यान भेजने की नाकाम कोशिश की। 1971 में जाकर पहले ऑर्बिटर मिशन को सफलता मिली। मंगल की कक्षा में घूमने वाले उपग्रह, लैंडर और रोवर भेजने के कुल 51 मिशन हुए हैं, जिनमें से 21 ही सफल हो सके हैं। कुछ प्रक्षेपण के स्तर पर ही नाकाम रहे तो कुछ का जमीन से संपर्क टूट गया और कुछ मंगल की कक्षा की ओर बढ़ते समय भटककर अंतरिक्ष में लुप्त हो गए।
sabko ana hi padta hai sarvshaktiman ke aage koi kuchh nahi
ReplyDelete