हिंदुत्व का विरोध करने वाले ही सांप्रदायिक हैं। हिंदू व हिंदुत्व ही सही मायनों में धर्मनिरपेक्ष हैं। सांप्रदायिक तो वे हैं जो तुष्टीकरण करते हैं। हिंदुत्व जो भारत का जीवन दर्शन और प्राणतत्व है, उसमें सबका विकास समाहित है, पर गंदी राजनीति के दौर में तमाम दल अपने पापों पर परदा डालने के लिए कथित धर्मनिरपेक्षता का नकाब पहन ले रहे हैं। अब नकाब उतरने के बाद इनका असली चेहरा जनता के सामने है। मुजफ्फरनगर इसका हालिया सबूत है
ये बातें प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने कही। वे मंगलवार को गोरखपुर में महाराणा प्रताप (एमपी) इंटर कालेज में एमपी शिक्षा परिषद संस्थापक समारोह के समापन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे।
उन्होंने कहा कि मेरे जीवन में राम, खेती और शिक्षा का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रहा है। करोड़ों हिंदुओं की तरह भगवान श्रीराम मेरे भी आराध्य हैं। मेरे जीते जी अयोध्या में भव्य राम मंदिर बने, यह मेरा सपना है। राम मंदिर भारतीय संस्कृति का श्रेष्ठतम प्रतिमान है। यह हिंदू जीवन दर्शन का स्रोत है। इसका विरोध देश की संस्कृति, दर्शन और राष्ट्रीयता का विरोध है।
उन्होंने कहा कि किसान का बेटा होने के नाते जो किसान मौसम की मार सहकर औरों का पेट भरते हैं, उनकी दुर्दशा भी मुझे सालती है। बचपन से ही मैं शिक्षक बनना चाहता था। बना भी। देश की भावी पीढ़ी के निर्माण का एक मात्र जरिया शिक्षा और उससे मिले संस्कार ही हैं। एमपी शिक्षा परिषद द्वारा इस क्षेत्र में किया जा रहा काम बेहद सराहनीय है।
गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी और सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि संत के जीवन का एक मात्र लक्ष्य मोक्ष होता है, पर ब्रह्मालीन महंत दिग्विजयनाथ संत होते हुए भी देश और समाज के लिए पूरी तरह समर्पित थे। अपने समय में उन्होंने हर क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी। शिक्षा के क्षेत्र में बेहद पिछड़े पूर्वाचल में ज्ञान के प्रकाश के लिए उन्होंने 1932 में जिस परिषद की स्थापना की वह वट वृक्ष बन चुका है। गोरखपुर विश्वविद्यालय की स्थापना में भी उनका महत्वपूर्ण स्थान था। हर साल पूरी भव्यता के साथ संस्थापक समारोह मनाकर हम उन संकल्पों को दोहराते हैं, जिसे ब्रह्मालीन महंत दिग्विजयनाथ ने लिया था। शिक्षा, चिकित्सा और हिंदुत्व के लिए पीठ की परंपरा जारी रहेगी यह मेरा संकल्प है। अध्यक्षता गोरक्षपीठाधीश्वर महंत अवेद्यनाथ ने की।
आभार पूर्व कुलपति प्रो.यूपी सिंह ने जताया जबकि संचालन डा. श्रीभगवान सिंह ने किया।
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