बालिका शिक्षा का सरकारी दावा तार तार हो गया है। उच्च शिक्षा को लेकर बालिकाओं को आगे बढ़ाने के प्रयासों पर जर्जर संसाधन ही रोड़ा बन गए हैं। हिंदू कालेज का गर्ल्स हास्टल इसकी नजीर है। कर्मचारियों में कब्जे वाले इस हास्टल में अब छात्राएं नहीं रुकती हैं। दर्द उन्हें है लेकिन सुनवाई कही नहीं है। कोई एमएसटी के सहारे तो कोई हर माह किराये के कमरे में रहने को मजबूर है।
ठंड का मौसम है। छात्राओं का कालेज आना भी मजबूरी है। सुबह टिफिन लेकर छात्राएं कालेज आती हैं और छोटे हो रहे दिन में वापसी की भी चिंता इन्हें सताती रहती है। इनके लिए हिंदू कालेज कैंपस में ही गर्ल्स हास्टल बना है। तीस छात्राओं के मानक वाले इस हास्टल में वर्षों से कोई रुका ही नहीं। बड़ा कारण असुरक्षा। टूटते प्लास्टर, उखड़ता फर्श और भी बहुत कुछ। शायद इसी का फायदा उठाया गया और यह हास्टल अब सिर्फ यहां की दीवारों पर ही लिखे श्लोगन में दिख जाता है। अंदर कर्मचारियों और ठेकेदारों के परिवार वालों का निवास बन चुका है। इनमें से तमाम हर माह मोटी रकम तनख्वाह के रूप में भी लेते हैं लेकिन किराया देना फितरत नहीं है। प्राचार्य डा. केए गुप्त कहते हैं कि रहने के लिए कोई आवेदन नहीं आया था। कब्जा है तो हटाया जाएगा और सही कराकर इसे इच्छुक छात्रा को आवंटित किया जाएगा।
शीतल, हिंदू कालेज में बीए द्वितीय वर्ष की छात्रा हैं। प्रतिदिन चंदौसी से आती-जाती हैं। परीक्षा के समय महानगर में ही किराया का कमरा लेकर रहती हैं। कहती हैं कि गर्ल्स हास्टल में रहने को तैयार हैं, लेकिन पहले सुरक्षा दें।
उमा, कालेज में एमए प्रथम वर्ष की छात्रा हैं। काशीपुर की रहने वाली हैं। महानगर में ही किराए के कमरे पर हैं। हर महीने दो से तीन हजार रुपये भी खर्च होते हैं। वह भी सुरक्षा मांग रही हैं।
राधा, कालेज में एमए अंतिम वर्ष की छात्रा हैं। यह जसपुर की हैं। कहती हैं कि कालेज आने के लिए लंबा सफर तय करना पड़ता है। रोज सौ-दौ सौ रुपये खर्च होते हैं। गर्ल्स हास्टल में रहने का इंतजाम हो जाए रोज-रोज की दिक्कत खत्म हो जाती।
यह होना चाहिए इंतजाम:
- गर्ल्स हास्टल में दो वार्डन की नियुक्ति होनी चाहिए
- छात्राओं की सुरक्षा के लिए एक चौकीदार की तैनाती।
- गेट पर भी हो सुरक्षा गार्ड की तैनाती।
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