बिहार की नितीश सरकार में सात साल से कोमा में पडे़ सिपाही के साथ प्रशासन और पुलिस विभाग ज्यादती पर ज्यादतियां करता जा रहा है। खुद को न्याय की सरकार कहने वाले सीएम नितीश आंखे मूंदे हुए है।
बिहार पुलिस में तैनात सिपाही लखींद्र सिंह डयूटी पर हुए हादसे के बाद जिंदा लाश बना हुआ है। सिपाही को सरकारी मदद व इलाज देने के बजाए, संवेदनहीन प्रशासन लगातार उसके तबादले के आदेश जारी कर रहा है।
२००६ के पंचायत चुनाव में लखींद्र समेत पांच सिपाहियों को मतपत्र लाने के लिए कोलकाता भेजा गया थाण् वहां से लौटने के क्रम में २७ अप्रैल २००६ को नालंदा के पास इनकी बोलेरो गाड़ी में एक ट्रक ने ठोकर मार दी, जिससे उसमें सवार ५ जवान घायल हो गये। उनमें से ४ तो इलाज के बाद ठीक हो गये। लेकिन लखींद्र आज तक कोमा में है। आज तक उन्होंने आंखें नहीं खोली हैं।
सिपाही लखींद्र चौधरी हाथ.पांच काम नहीं करते, गले में पाइप लगा है. उसी के सहारे भोजन दिया जाता है, प्रशासन ने उसके समुचित इलाज की कोई व्यवस्था नहीं की इस हाल में होते हुए भी लखींद्र का तीन बार तबादला आदेश जारी कर दिया गया, जिसे किसी तरह रुकवाया गया, लहेरियासराय पुलिस लाइन के क्वार्टर में पड़े लखींद्र की पत्नी और उसके तीनों बच्चे तीमारदारी में लगे हैं।
मुजफ्फरपुर जिले के सरैया के रेवा की छह कट्ठा जमीन बिक चुकी और शेष जमीन बंधक रखनी पड़ी, पत्नी सीमा देवी कहती हैं-अब तो बस देह पर का कपड़ा रह गया है, अब एक ही रास्ता रह गया है, इनको उठा कर बड़े हाकिमों के दरवाजे पर रख दूंगी, वहीं जो होना होगा हो जायेगा।
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