अगस्ता वेस्टलैंड वीवीआइपी हेलीकाप्टर सौदे के सम्बन्ध में 'द इंडियन एक्सप्रेस' का खुलासा 1980 के दशक के अंत में जो कुछ हुआ उसकी पुनरावृत्ति लगता है. मार्टिन आइबो की डायरी जब्त कर ली गई थी. वह बोफोर्स तोप बनाने वाली कंपनी के प्रमुख थे. अनेक खुलासो के बीच, डायरी में 'क्यू' को संरक्षण देने का संकेत दिया गया है. पैनी नजर रखने वाली सभी जानते हैं कि 'क्यू' कौन हो सकता है. 1993 में स्विस अधिकारियों ने बैंक खातो का विवरण दिया था, जिनमे बोफोर्स तोप सौदे की दलाली दी गई थी. इन खातों में से एक लाभार्थी, जिसके खाते में पर्याप्त धनराशी जमा की गई वह जाना पहचाना 'क्यू' था. 'क्यू' को भारत से भागने की इजाजत दी गई और बाकी इतिहास बन गया.
वीवीआइपी हेलीकाप्टर के सौदे में दलाली दी गई. रक्षात्मक यूपीए की सरकार ने सौदा रद्द कर दिया. इंडियन एक्सप्रेस ने पहले उदहारण में बताया है. भारत सरकार में फैंसला लेने में भूमिका किसने निभाई. यहाँ तक कि इतालवी बिचौलिए यह समझ चुके थे कि भारत में महत्वपूर्ण फैंसले श्रीमती सोनिया गाँधी द्वारा प्रभावित होते हैं. प्रधानमंत्री ज्यादा से ज्यादा उनके अनेक सलाहकारों में से एक हैं. बिचौलिए बहुत चालाक लोग हैं. वे निष्कर्षों पर आने से पहले अपना होम वर्क करते हैं. बही खातो में जो संक्षिप्त नाम है वह मुझे मार्टिन आइबो की डायरी की याद दिलाते हैं.
श्रीमती सोनिया गाँधी को वास्तव में परेशान होना चाहिए. भारत सरकार को भारत के जनता और बाहर के लोग किस तरह से देख रहे हैं ? क्या यह सोना खोदने वालों की सरकार है? क्या वे जिस यूपीए का नेतृत्व कर रहीं हैं उसने भारत को चोरी करने की बीमारी करने की तरफ धकेल दिया है? क्या वे जिस सरकार को नियंत्रित कर रहीं हैं वह पांचवी मशीन हैं ? सरकार के वास्तव में काफी भ्रष्ट छवि है. आर्धिक मोर्चे के रूप में उसका कामकाज निराशाजनक है. 2012-13 के आंकड़ो ने विकास दर को 4.5 प्रतिशत पर ला दिया है. अगर श्री चितम्बरम के शब्दों में कहा जाए तो यूपीए -2 की आर्थिक उपलब्धियों को डाक टिकट के पीछे लिखा जा सकता है. हाल के चुनाव परिणाम सत्तारुड गठबंधन की निराशाजनक तस्वीर प्रस्तुत करते हैं. जिस नेता को उन्होंने 2014 के आम चुनावों के लिए पेश किया है, वह कोई असर दिखाने में नाकाम रहें हैं.
इन प्रतिकूल परस्थितियों का सामना कर रहीं यूपीए की अध्यक्ष अब हताश होकर इस तरह की बयानबाज़ी कर रहीं हैं. 'जहर की खेती' का उनका बयान विकास के एजेंडे से भटकाने के लिए चुनाव का सांप्रदायिकरण करने के इरादे से किया गया है. उनकी हताशा समझ में आती है. यह अलग बात है कि चुनाव को सांप्रदायिक करने के मुद्दे पर केन्द्रित करने की उनकी कोशिश का कोई नतीजा नहीं निकले ..
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