ब्रिटिश संसद हाऊस ऑफ लॉर्ड्स के ससंद सदस्य मेघनाद देसाई जयपुर में आयोजित साहित्यि परिषद में सम्मिलित हुए थे । उस समय उन्होंने यह वक्तव्य दिया कि हिंदुओं के आचरणीय एवं अनुकरणीय तत्त्वज्ञान वाली श्रीमद्भगवदगीता का लेखन किसने किया अथवा बताया ? गीता के तत्त्वज्ञान के संदर्भ में अनेक संदेह-असंदेह हैं । गीता में धर्मनिरपेक्षता का अभाव होने के कारण आज धर्मनिरपेक्ष भारत को उसकी आवश्यकता नहीं है ।
मेघनाद देसाई का यह छोटा मुंह बडी बात वाला वक्तव्य ! हिदुओं के इस महान ग्रंथ पर मेघनाद देसाई की कुछ भी पात्रता न होते हुए भी इस तरह की बकवास करने का यह दुस्साहस कैसे ? गीताके तत्त्वज्ञान को ‘धर्मनिरपेक्ष’, शब्द ही अस्वीकार है । अतः गीता का धर्मनिरपेक्ष होना कभी भी संभव नहीं है !
उनका यह बयान दामोदर धर्मानंद कोसंबी द्वारा गीता पर लिखे गए आलोचनात्मक पुस्तक पर आधारित है, उन्होंने ऐसा विधान भी किया है ।
साम्यवादियों का साथ देने से इसी प्रकार की बयान बाजी होना तो तय ही है, जो लोग ईश्वर तथा धर्म से द्वेष करते हैं, क्या कभी उनके द्वारा हिंदुओं की गीता के इस श्रेष्ठ तत्त्वज्ञान की प्रशंसा की जाएगी ?
देसाई ने बताया कि मैंने गीता का अभ्यास किया, किंतु उसके विषय में मैं अनभिज्ञ रहा । गीता के विषय में वे अनभिज्ञ क्यों रह गए, देसाई इसका विचार करें तथा साधना प्रारंभ करें; तो ही भविष्य में जब वे भारत में आएंगे, उस समय गीता के विषय में सकारात्मक वक्तव्य दे सकेंगे !
मेघनाद देसाई क्या कभी ऐसा बयान दे सकते हैं कि मूर्तिपूजकों की हत्या करें, अन्य धर्मियों को धर्मांतरित करें, इस प्रकार की धार्मिक सीख देने वाला कुरान तथा बाइबल भी धर्मनिरपेक्ष नहीं है ?
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