अ. वंश-वाद की राजनीति से १० जनपथ पर प्रधानमंत्री की कुर्सी का अस्तित्व !
आ. एक अर्थशास्त्री पंजाबी सिख का आत्मसम्मान !
इ. शासन से और राष्ट्रद्रोहियों से विज्ञापन प्राप्त करने के लोभ में भारत के प्रचारमाध्यम !
ई. सांसदों के क्रय-विक्रय के प्रति जनता का विश्वास !
उ. एक अभारतीय गोरी महिला के वर्चस्व की आड में भारतीयों का जीवन !
हिंदुराष्ट्र की स्थापना हेतु हिंदुओं की सिद्धता !
सत्ता के नाम पर ढोंग रचने वाले, बहरूपिए, राजनेताओं द्वारा कहां-कहां, क्या-क्या, कैसे-कैसे बिक रहा है, इसका भी मैं कुछ शब्दों में वर्णन करना चाहूंगा । वंश-वाद की राजनीति के कारण आज भी १० जनपथ पर प्रधानमंत्री की कुर्सी का अस्तित्व बिक रहा है । भारतीयों से घिरे हुए एक अर्थशास्त्री पंजाबी सिख का आत्मसम्मान बिक रहा है । सरकारी वर्ग राष्ट्र-द्रोहियों द्वारा विज्ञापन अर्जित करने की लालसा में भारत का प्रचार-प्रसार जगत बिक रहा है । सांसदों के क्रय-विक्रय से जनता का विश्वास बिक रहा है । एक अभारतीय गोरी महिला के वर्चस्व की आड में, भारतीयों का जीवन बिक रहा है ।
ऊ. मुस्लिम पर्सनल लॉ के प्रति प्रेम में, भारत का संविधान !
ए. भ्रामक धारा ३७० के कारण, भारत का स्वर्ग कहा जानेवाला कश्मीर !
ऐ. ध्वस्त बाबरी ढांचे की धूल में अडवानी के जीवन की प्रामाणिकता (ईमान) !
ओ. गजनी से आरंभ कर कसाब जैसे आतंकवादियों का सम्मान करने की लालसा में चौहान और वीर सावरकर जी जैसे राष्ट्रीय वीर पुरुषों की गाथारूपी मां भारती के आंखों की ज्योति ।
औ. मुसलमानों के मतों के लालच में भारत के तिरंगे का सम्मान !
अं. एक नागिन का दुग्धपान करने वाले नागों की आड में विश्व की श्रेष्ठतम भारतीय सेना के रणवीरों का आत्मबल !
क. अविवेकी सोनिया (गांधी) और शीला (दीक्षित) की निष्क्रियता से देहली में महिलाओ का शील !
ख. स्विस बैंक समान अधिकोषों में प्रत्येक भारतीय के परिश्रम का पैसा भेंट चढ रहा है !
मुस्लिम पसर्नल लॉ की चाहत में भारत का संविधान बिक रहा है । धारा ३७० की भ्रमित आड में भारत का स्वर्ग कहा जाने वाला कश्मीर बिक रहा है । ध्वस्त बाबरी ढांचे की धूल के गुब्बारे में अडवानी के जीवन का ईमान बिक रहा है । गजनी से लेकर कसाब जैसे आतंकवादियों के सम्मान की चाह में चौहान और वीर सावरकर जी जैसे राष्ट्रीय वीर पुरुषों की गाथारूपी मां भारती की आंखों का नूर बिक रहा है । इस्लामी वोटों की लालसा में भारत के उदयमान तिरंगे का मान बिक रहा है । एक नागिन का दूध पिए हुए नागों की आड में वैभवशाली सेनाओं के रणवीरों का आत्मबल बिक रहा है । स्विस बैंक आदि दल-दल की कीचड में प्रत्येक भारतीय की मेहनत का रक्त भेंट चढ रहा है । अविवेकी सोनिया (गांधी) और शीला (दीक्षित) की निष्क्रियता पर दिल्ली में महिलाओं का सतीत्व बिक रहा है ।
ग. शासन सब कुछ करेगा, इस आशा में सच्चे भारतीयों का मनोबल !
घ. हज यात्रियों को प्रसन्न करने के लिए उपहार के रूपमें हिंदुआ के मंदिरों का राजस्व (अर्पित धन) !
च. आसुरी मुसलमानों की भूख शांत करने के लिए काम, धन और विधान (कानून) !
छ. बाबर और अकबर की नश्वर तथा कलुषित प्रतिमा नहीं, श्रीराम एवं श्रीकृष्ण का अद्वितीय गौरव ! मित्रो, इन निर्लज्जों ने क्या-क्या बेचा है, इस विषय में मैं हिंदु राष्ट्र को दो पंक्तियां समर्पित करता हूं ।
अरे लज्जा बिक चुकी, सत्यनिष्ठा बिक चुकी
इन निर्लज्जोंका देशाभिमान बिक चुका ।
जनताकी लाचारी तो देखो,
भारतकी गरिमाका स्वाभिमान भी बिक चुका ॥
२. राष्ट्रद्रोहियों को क्यों पालें ?
मित्रो, क्या हमारी विचार करनेकी शक्ति भी नष्ट हो चुकी है ? क्या एक अब्ज जनसंख्या वाले इस देश में, संसद में भेजने योग्य ५४४ देशभक्त भी आपको नहीं मिलते ? अपनी ही स्वार्थपूर्ति में मग्न, झूठे भ्रम पाले हुए इन विषैले नागों के सम्मान में आप हाथ में दूध का कटोरा लेकर क्यों खडे हैं ?
३. भारतपर सभी दिशाआ से आक्रमण होने के कारण अब देशव्यापी क्रांति की मशाल प्रज्वलित करने का संकल्प लेना अत्यावश्यक !
आज सीमाओं पर चीन मगरमच्छ की भांति मुंह फैलाए बैठा है । पाकिस्तान और बांग्लादेश इस मगरमच्छ के दांत हैं । दुर्भाग्यवश हमने आज की राजनीतिक सत्ता भी इस मगरमच्छ की जीभ पर रख दी है, ऐसा प्रतीत हो रहा है; परंतु मित्रो, अब समय आ चुका है कि हम १८५७ जैसी देशव्यापी क्रांति की मशाल प्रज्वलित करने का संकल्प लें । प्रत्येक घर, मंदिर, पूजा और प्रत्येक दीपक की ज्योति में इस क्रांति की मशाल को प्रज्वलित करने हेतु; धर्म और राष्ट्रकी रक्षा हेतु, हमें निर्णायक युद्ध की ओर अग्रसर होना अति आवश्यक है । अन्यथा, हमारा देश लुटते-लुटते और बंटते-बंटते, एक दिन इसका मानचित्र इन नेताओं के लिए किसी का दाह संस्कार करने योग्य भी नहीं बचेगा ।
है शपथ देशभक्तोंकी हमको, तबतक लेंगे विश्राम नहीं
जबतक इन अहिंदु तत्त्वोंको पहुंचा दें इनके धाम नहीं ।
इन मक्कारोंसे लडनेको, हमको हथियार जुटाने हैं
इन दुष्टोंके सिर काट-काट, मां कालीको हमें चढाने हैं ॥
४. हिंदु राष्ट्र के लिए संकल्प !
हमें हिंदु-राष्ट्रके प्रति अपनी वैधानिक विद्वता एवं सैद्धांतिक सिद्धताको प्रमाणित करना अति आवश्यक है । मित्रो, समय सब कुछ बदल देता है; किंतु हमें अपने कार्य से समय को ही परिवर्तित करना है । मैं एक संकल्प पढता हूं, आप उसे ध्यानसे सुनें और चिंतन भी करें ।
है शपथ देशभक्तोंकी हमको, तबतक लेंगे विश्राम नहीं
जबतक इन अहिंदु तत्वोंको पहुंचा दें इनके धाम नहीं ।
इन मक्कारोंसे लडनेको, हमको हथियार जुटाने हैं
इन दुष्टोंके सिर काट-काट, मां कालीको हमें चढाने हैं ॥
वक्ता : श्री. दास कमल अग्रवाल जी, मुख्य संपादक, नियतकालिक भारत की सच्चाई, भाग्यनगर, आंध्रप्रदेश.
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