काला धन मामले में कुछ कार्रवाई की उम्मीद जगी है. केंद्र सरकार ने विदेशी बैंकों में धन रखने वाले तीन कारोबारियों के नाम सोमवार को बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट के सामने रख दिए. सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक ये नाम हैं, डाबर के पूर्व डायरेक्टर प्रदीप बर्मन, राजकोट के कारोबारी पंकज चमनलाल लोढ़िया और गोवा के खनन किंग राधा टिम्ब्लू. केंद्र सरकार ने कोर्ट में एक अतिरिक्त हलफनामा दाखिल करके ये नाम बताए. इन तीनों के खिलाफ विदेशी बैंकों में गोपनीय तरीके से पैसे रखने के मामले में कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू हो गई है.
खबर पर 'डाबर' की प्रतिक्रिया भी सामने आई है. कंपनी ने कहा है कि यह बैंक खाता उस वक्त खोला गया था जब प्रदीप बर्मन एनआरआई थी और उन्हें यह खाता खोलने की कानूनी इजाजत थी. डाबर ने दावा किया है कि खाता खोलने के संबंध में सारे कानूनी पक्षों का ध्यान रखा गया है और उचित टैक्स भी चुकाया गया है. कंपनी ने कहा है कि यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि विदेश में अकाउंट रखने वाले हर शख्स को एक ही नजर से देखा जा रहा है. कंपनी ने कहा है कि फिलहाल प्रदीप बर्मन का डाबर से कोई संबंध नहीं है और डाबर इंडिया लिमिटेड में कोई पद उनके पास नहीं है.
सूत्र बता रहे हैं विदेशी बैंकों में खाताधारकों में जिन नेताओं के नाम हैं , उनके मामलों में अभी सबूत जुटाए जा रहे हैं. इस बारे में पुख्ता जांच के बाद कोर्ट के समक्ष उन नामों का खुलासा भी किया जा सकता है. अभी जो तीन नाम सामने आ रहे हैं उन्हें यह साबित करना होगा कि विदेशी बैंकों में उन्होंने जो पैसा रखा है, वह काला धन नहीं है और इस मामले में आरबीआई के दिशानिर्देशों की अवहेलना नहीं की गई है.
तीन नाम सामने आने के बाद कांग्रेस ने बीजेपी पर काउंटर अटैक किया है. कांग्रेस ने कहा है कि इससे अरुण जेटली का वह दावा झूठा साबित होता है जिसमें वह कह रहे थे कि नाम सामने आने के बाद कांग्रेस शरमा जाएगी . वहीं पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने कहा है कि अगर बीजेपी, नरेंद्र मोदी और संघ प्रमुख मोहन भागवत में साहस हैं तो सभी कालाधन धारकों के नाम सार्वजनिक करें.
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने पहले कहा था कि जिन विदेशी बैंकों के अकाउंट्स की जांच इनकम टैक्स लॉ के तहत शुरू नहीं की गई है उन नामों का खुलासा नहीं होगा. सरकार को लगता है कि ब्लैक मनी मामले में अवैधता की जांच शुरू किए बिना नामों का खुलासा करना निजता के अधिकार का उल्लंघन होगा जिसमें आरबीआई के नियमों के मुताबिक किसी भी भारतीय को यह हक है कि वह हर साल विदेशी बैंक में वैध तरीके से 1 लाख 25 हजार डॉलर जमा कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील राम जेठमलानी की याचिका पर कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह बेईमानी से विदेशी बैंकों में जमा किए गए भारतीय पैसों को वापस लाने के लिए उच्च स्तरीय टास्क फोर्स गठित करे. कोर्ट के आदेश पर तब की यूपीए सरकार ने जेठमलानी से उन भारतीयों नामों का खुलासा किया था जिनके अकाउंट लिचटेंस्टाइन बैंक में थे और जर्मन सरकार ने दोहरे कराधान बचाव समझौते के तहत सूचना मुहैया कराई थी .
इस मामले में नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने पहले हलफनामे में सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि जर्मनी की आपत्तियों के कारण वह उन भारतीयों के नामों खुलासा तब तक नहीं कर सकती है जब तक कि उनके खिलाफ वित्तीय कानून के तहत अनियमितता की जांच शुरू नहीं हो जाती. इससे पहले नामों का खुलासा करने से द्विपक्षीय समझौते की शर्तों का उल्लंघन होगा. इसमें कहा गया है कि भारत सरकार, अमेरिका समेत दूसरे देशों से कुछ महत्वपूर्ण दोहरे कराधान बचाव समझौते में लगी है. कोर्ट को बताया गया है कि इन संधियों के माध्यम से ही विदेशी बैंकों में जमा भारतीयों के ब्लैक मनी से जुड़ी सूचनाओं के स्रोत तक पहुंचा जा सकता है.
सरकार ने कोर्ट से कहा था कि यदि हम समझौतों के करारों का उल्लंघन करते हैं तो विदेशी बैंकों में भारतीयों द्वारा छुपाकर रखे गए पैसों से जुड़े डेटा दूसरे देश साझा करने से इनकार कर देंगे. केंद्र सरकार ने इस हलफनामे के जरिए कोर्ट को आश्वस्त किया है कि वह उन भारतीयों के नामों का खुलासा करने के लिए तैयार है जिनके विदेशी बैंक खातों की जांच की सिफारिश की गई है. जेठमलानी ने सरकार के इस स्टैंड पर कड़ी आपत्ति जताई थी. उन्होंने कहा था कि सरकार सब कुछ रहस्य बनाकर रखना चाहती है. उन्होंने दोहरे कराधान बचाव समझौते के बारे में कहा था कि यह सब कुछ छुपाने की चाल है . सरकार के इस फैसले की कांग्रेस ने भी निंदा की थी.
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